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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे कम्मह-मदि०-सुद०-प्रसंज---तिण्णिले०-अब्भवति०-मिच्छादि०-असण्णि--प्रणाहारगत्ति । सेसाणं संखेंज-असंखेंजरासीणं उक्कस्सभंगो। णवरि किंचि विसेसो अत्थेण साधेदव्यो । सव्वपदा अणंतरासीणं बंधगाणं ओघेण तिरिक्खोघेण च साधेदव्यो ।
एवं अंतरं समत्तं ।
__ भावपरूवणा २५६. भावं दुविधं-जह० उक्कस्सयं च। उक० पगदं। दुवि०-ओघे आदे। ओघे० अदृण्णं कम्माणं दोण्णं पदाणं बंधगा त्ति को भावो ? ओदइगो भावो। एवं अणाहारग त्ति णेदव्वं । एवं जहण्णगं पि णादव्वं ।
एवं भावं समत्तं'।
अप्पाबहुअपरूवणा २६०. अप्पाबहुगं दुविहं-जहण्णयं उक्कस्सयं च । उक्कस्सए पगदं। दुवि०. ओघे० आदे० । ओघे० सव्वतिव्वाणुभागं वेद०। णाम०-गोद० दो वि तुल्लाणि
जीवोंका अन्तरकाल नहीं है । वेदनीय, आयु और नामकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। इसी प्रकार औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, तीन लेश्यावाले, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये। शेष संख्यात और असंख्यात संख्यावाली राशियोंका भंग उत्कृष्टके समान जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इन मार्गणाओंमें जो कुछ विशेषता है,वह अर्थके अनुसार साध लेनी चाहिये । तथा अनन्त संख्यावाली मार्गणाओंमें बन्धक जीवोंके सब पदोंका भंग ओघ और सामान्य तिर्यश्चोंके अनुसार साध लेना चाहिये।
विशेषार्थ-इन सब मार्गणाओंके स्वामित्वका विचार कर अन्तर काल घटित कर लेना चाहिए। जिस मार्गणामें जो विशेषता है,वह घटित की जा सकती है, इसलिए सबके विषय यहाँ अलग-अलग नहीं लिखा है।
इस प्रकार अन्तर समाप्त हुआ।
भावप्ररूपणा २५६. भाव दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है--ओघ और आदेश। ओघसे आठों कर्मों के दोनों पदोंके बन्धक जीवोंका कौनसा भाव है ? औदयिक भाव है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये। तथा इसी प्रकार जघन्य अनुभागबन्धकी अपेक्षा भी जानना चाहिये।
इस प्रकार भाव समाप्त हुआ।
अल्पबहुत्वप्ररूपणा २६०. अल्पबहुत्व दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और आदेश । ओघसे वेदनीयका उत्कृष्ट अनुभागवन्ध सबसे तीन
१. ता. प्रती एवं भावं समत्तं इति पाठो नास्ति ।
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