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खामित्तपरूवणा
७७, खड़ग० घादि०४ ओघं । गोद० जह० अणु० ? चदुगदि० असंज० सागार-जा० णिय० उक्क० । सेसं ओधिभंगो । वेदग० घादि०४ तेउ० भंगो । सेसं ओधिभंगो । उवसम० घादितिगं जह० + अणु० कस्स ० १ अण्ण उवसम० सुहुमसंप० चरिमे जह० वट्ट० । वेद० णामागो० ओधिभंगो । मोह० जह० अणु० कस्स ० | अण्ण उवसम० अणियट्टि० ।
७८. सासणे घादि०४ जह० अणु० कस्स० १ अण्ण० चदुगदि० सव्वविसु० | वेद०-णामा० जह० अणु० कस्स० १ चदुर्गादि० परिय० मज्झिम० । आयु० णिरयभंगो । गोद० जह० अ० कस्स० ? अण्ण० सत्तमाए पुढ० सागार - जा० सव्वविसु० ।
७९ सम्मामि० घादि०४ जह० अणु० कस्स० १ अण्ण० चदुर्गादि० सव्वविसु० सम्मत्ताभिमुह० । वेद० - णामा० जह० अणु० ? चदुर्गादि० परिय० । गोद० जह० अणु० कस्स० ? अण्ण० चदुगदि० सागार-जागा० णिय० उक्क० संकिलि० मिच्छत्ताभिमुह० । असण्णी० एइंदियभंगो | अणाहार० कम्मइगभंगो | एवं जहण्णयं समत्तं ।
एवं सामित्तं समत्तं ।
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७७ क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवों में चार घाति कर्मोंका भङ्ग ओके समान है । गोत्रकर्मके जघन्य अनुभाग बन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत और नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त चार गतिका असंयनसम्यग्दृष्टि जीव गोत्र कर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी हैं। शेष कर्मोंका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवों के समान है । वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार घाति कर्मोंका भंग पीतलेश्यावाले जीवोंके समान है। शेप कर्मोंका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है । उपशमसम्यग्दृष्टि जीवों में तीन घाति कर्मों के जन्य अनुभाग बन्धका स्वामी कौन है ? अन्तिम जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर उपशामक सूक्ष्ममापरायिक जीव उक्त कर्मके जवन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मका भंग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। मोहनीय कर्मके जघन्य अनुभाग बन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर उपशामक अनिवृत्तिकरण जीव मोहनीय कर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है |
७८. सामादनसम्यग्दृष्टि जीवों में चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागन्धका स्वामी कौन है ? सर्वशुद्ध अन्यतर चार गतिका जीव उक्त कर्मो के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है | वेदनीय और नाम कर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला चार गतिका जीव उक्त कर्मोक जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। आयुकर्मका भंग नारकियोंके समान है । गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-आगृत और सर्वविशुद्ध सातवीं पृथिवीका नारकी जीव गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है ।
७६. सम्यरमिध्यादृष्टि जीवोंमें चार वातिकर्मो के जयन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सर्वशुद्ध और सम्यके अभिमुख अन्यतर चार गतिका जीव उक्त कर्मोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है | वेदनीय और नामकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला चार गतिका जीव उक्त कर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी हैं । गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार- जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और मिथ्यात्व श्रभिमुख अन्यतर चार गतिका जीव गोत्र कर्म के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । असंज्ञियोंमें एकेन्द्रियों के समान भंग है। अनाहारकों में कामणिकाययोगी जीवोंके समान भंग है । इस प्रकार जघन्य स्वामित्व समाप्त हुआ । इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ ।
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