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कालपरूवणा
११३ सव्वबादर-सुहम०-सबवणफ-सव्ववणप्फदि-णियोद० ।।
२४५. पंचिदि०-तस०२ सत्तणं क० ओघं । आउ• णिरयोघं । एवं पंचमण.. पंचवचि०-इत्थि०-पुरिस०-आभि०-सुद०-ओधि०-[संजदासंजद]चक्खुदं०-ओधिदं०सम्मादि०-वेदग०-सणि ति।
२४६. आहार-आहारमिस्स० आउ० मणुसि भंगो। सेसाणं सत्तण्णं क० उक्क. जह० एग०, उक्क संखेजसम० । अणु० जह० एग०, उक्क० अंतो० । एवं अवगदवे. सत्तणं क० सुहुमसंप० छण्णं क०।।
२४७. मदि०-सुद० सत्तण्णं क० ओघ । आउ० तिरिक्खोपं । एवं विभंग.. असंज-मिच्छादि० । णवरि विभंगे० आउ० पंचिं०तिरि०भंगो।
२४८. तेउ०-पम्मा० ओधिभंगो । सुकाए सत्तण्णं क० ओधिमंगो। आउ० मणुसि०भगो । एवं खड़ग०।।
२४६. उवसम० घादि०४ उक० जह० एग०, उक्क ० आवलि० असंखेजदि० । अणु० जह० अंतो०, उक्क० पलिदो० असंखेज । वेद०-णाम गोद० उक० जह० एग०, उक्क० संखेजसम० । अणु० जह० अंतो०, उक्क० पलिदो० असं० । सासणे सर्वदा है। आयुकर्मका भंग ओघ के समान है। इसी प्रकार सब बादर, सब सूक्ष्म, सब बनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर, सब वनस्पतिकायिक और निगोद जीवोंके जानना चाहिये।
२४५. पंचेन्द्रियद्विक और त्रसद्विक जीवोंमें सात कर्मीका भंग ओघके समान है। आयु. कर्मका भंग सामान्य नारकियोंके समान है। इसी प्रकार पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, संयतासंयत, चक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिये।
२४६. आहारक काययोगी, और आहारक मिश्रकाययोगी जीवोंमें आयुकर्मका भंग मनुष्यिनियों के समान है। शेष सात कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार अपगतवेदी जीवोंमें सात कोका और सूक्ष्मसाम्परायिकसंयत जीवोंमें छह कर्मोका काल जानना चाहिये।
२४७. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें सात कर्मोंका भंग ओघके समान है। आयुकर्मका भंग सामान्य तिर्यंचोंके समान है। इसी प्रकार विभंगज्ञानी, असंयत और मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि विभंगज्ञानमें आयुकर्मका भंग पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान है।
२४८. पीत और पद्मलेश्यावाले जीवोंमें अवधिज्ञानी जीवोंके समान भंग है। शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें सात कर्मोंका भंग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। आयुकर्मका भंग मनुष्यनियोंके समान है। इसी प्रकार क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये। ____ २४६. उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें चार घाति कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल अन्तमुंहूते है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्म के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका जघन्य काल
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