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फोसणपरूवणा
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२१६. वेउधि० घादि०४ उक्क० अणु० अट्ठ-तेरह० । वेद०णामा-गो० उक्क० अट्ठ० । अणु० अट्ठ-तेरह० । आउ० उक्क० अणु० अट्ठ० । वेडव्वियमि०० आहार ०आहारमि० - अवमदवे ०.मणपज० - संजद - सामाइ० छेदो० - परिहार० - सुहुमसंप ० - असण्णि चित्तभंगो ।
२१७. कम्मइ० वादि०४ उक्क० ऍक्कारस० । अणु० सव्वलो० । वेद०१०-णामागोद० ६० उक्क० छच्चों० । अणु० सव्वलो० । एवं अणाहार ० I
विशेषार्थ - औदारिककाययोगमें चार घातिकर्मोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध संज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त दो गति के जीवोंके ही हो सकता है और ऐसे जीवोंका उत्कृष्ट स्पर्शन नीचे कुछ कम छह राजु अधिक सम्भव नहीं, इसलिए औदारिक काययोगी जीवोंमें चार घाति कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धक जीवों का स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है ।
२१६. वैक्रियिककाययोगी जीवों में चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है | वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बड़े चौदह राज drea चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदी, मन:पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापना संयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसाम्परायसंयत, और असंज्ञी जीवों में स्पर्शन क्षेत्रके समान है ।
विशेषार्थ- वैक्रियिककाययोगमें चार घातिकर्मोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध मारणान्तिक समुद्घातके समय भी सम्भव है, पर ऐसी अवस्थामें वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सम्भव नहीं है; इसलिए इनमें चार घातिकमोंके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बढे चौदह राजू कहा है तथा बेदी तीन कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन एक मात्र कुछ कम आठ बटे चौदह राजू कहा है । यहाँ इन सात कर्मोंका अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध सब अवस्थामों में सम्भव है, इसलिए इनके अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह
चौदह राजू कहा है । किन्तु आयुकर्मके बन्धकी स्थिति इससे भिन्न है । मारणान्तिक समुद्घात के समय तो उसका बन्ध सम्भव ही नहीं, इसलिए उसके उत्कृष्ट और श्रमुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू कहा है। शेष कथन सुगम है ।
२१७. कार्मणकाययोगी जीवोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम ग्यारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह वटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये ।
विशेषार्थ - कार्मणकाययोगी जीव नीचे कुछ कम छह राजू और ऊपर कुछ कम पाँच राज स्पर्श करते हुए चार घाति कर्मोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करते हैं, अतः चार घातिकमोंके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका कुछ कम ग्यारह बटे चौदह राजू स्पर्श कहा है। वेदनीय, नाम और
१ ता० प्रतौ अणाहार ० इत्यस्य पाठस्याग्रे पूर्णविरामो नास्ति । अन्यन्नापि एवंविधो व्यत्ययो दृश्यते ।
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