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फोसणपरूवणा
२०७ २३३. कम्मइ० घादि०४-गोद० जह० छच्चों। अज० सव्वलो० । सेसाणं ओघं ! एवं अणाहारग त्ति । । २३४. इथि०-पुरिस० घादि०४ जह० खेत्तभंगो। अज० अ० सव्वलो० । वेद०-णाम गोद० जह० अज० अडचों सव्वलो । उ० जह० खेत० । अज० अट्ट० । विभंग० पंचिंदियभंगो।
२३५. आमि०-सुद०-ओधि० घादि०४ जह• खेत्तभंगो। अज० अट्ठचों । सेसाणं जह० अज० अढ० । एवं ओधिदं०-सम्मादि०-खइग०-वेदग० उपसम० ।
चौदह राजू प्राप्त होने में कोई बाधा नहीं आती। आयुकर्मका बन्ध मारणान्तिक समुद्घातके समय नहीं होता, इसलिए इसके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू कहा है। यहाँ वैक्रियिकमिश्रकाययोगी आदि अन्य जितनी मार्गणाएँ गिनाई हैं, उनका क्षेत्र भी लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है और स्पर्शन भी उतना ही है। अतः इनमें यथासम्भव कमांक जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है।
___२३३. कार्मणकाययोगी जीवोंमें चार घातिकर्म और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष कर्मोंका भंग ओधके समान है। इसी प्रकार अनाहारक जीवोंके जानना चाहिये।
विशेषार्थ-कार्मणकाययोगमें चार घातिकर्मोंका जघन्य अनुभागबन्ध सर्वविशुद्ध चार गतिके असंयत सम्यग्दृष्टि जीव करते हैं और गोत्रकर्मका जघन्य अनुभागबन्ध सर्वविशुद्ध मिथ्यादृष्टि नारकी करते हैं। यतः इन दोनोंका उपपाद पदकी अपेक्षा स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजू है,अत: वह उक्त प्रमाण कहा है। इनके अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका सब लोक और शेष कर्मोके
प्रजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन प्रोघके समान है.यह स्पष्ट ही है। कार्मणकाययोगके काल में जीव अनाहारक ही होते हैं, अतः इनका कथन कार्मणकाययोगियोंके समान कहा है।
___२३४. स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवोंमें चार घातिकर्मोके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू
और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वेदनीय. नाम और गोत्रकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विभंगज्ञानी जीवों में पंचेन्द्रियोंके समान स्पर्शन है।
विशेषार्थ-स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी मिथ्यादृष्टि जीवोंका अतीतकालीन स्पर्शन कुछ कम आठ वटे चौदह राजू और सब लोक कहा है। यतः यहाँ यह स्पर्शन आयुके सिवा सभी कोके अजघन्य अनुभागबन्धके समय तथा वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धके समय सम्भव है,अतः यह उक्त प्रमाण कहा है। आयुकर्मका अजघन्य अनुभागबन्ध मारणान्तिक समुद्घातके समय सम्भव न होनेसे वह कुछ कम आठ बटे चौदह राजू कहा है। शेष कथन स्पष्ट ही है।
२३५. आभिनियोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें चार घातिकर्मोके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाठबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । शेष कर्मों के जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक
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