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फोसणपरूवणा २३१. पुढवि०-आउ०-त्रणप्फदि-णियोद० घादि०४ जह० लोग० असं० । अज. सव्वलो० । वेद०-आउ०-णाम०-गोद० जह. अज० सव्वलो०। बादरपुढ०-आउ० तेसिं चेव अपज० बादरवणप्फदि०-बादरणियोद-पजत्तापजत्त-बादरवणफदि०पत्ते. तस्सेव अएज० घादि०४ जह० खत्तभंगो। अज० सव्वलो० । वेद०-णामा-गोद० जह० अज० सव्वलो० । आउ० जह• अज० लो० असं० । तेऊणं घादि०४-गोद० जह० लो० असं० । अज० सव्वलो० । सेसाणं जह० अज० सव्वलो० । पादरतेउ-चादरतेउ० अपज्ज०' तं चैव । णवरि आउ० जह० अज० लो० असं० । बादरतेउ०पजत्ता० घादि. ४-गोद० जह० लो० असं० । अज० लो० असं० सव्वलो०। वेद०-णामा० जह०
कहा है, क्योंकि इन जीवोंके अजघन्य अनुभागबन्ध प्रत्येक अवस्थामें सम्भव होनेसे यह स्पर्शन बन जाता है । इन मार्गणाओंमें वेदनीय और नामकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामित्व ओघके समान है तथा इनका अजघन्य अनुभागबन्ध सर्वत्र सम्भव है ही, अतः वेदनीय और नामकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन भी कुछ कम आठ बटे चौदह राजु
और सब लोक कहा है । मात्र आयुकर्मका बन्ध मारणान्तिक समुद्घात और उपपाद पदके समय नहीं होता, इस लिए तो इसके अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ काम आठ बटे चौदह राजू कहा है । तथा इसके जघन्य अनुभागके वन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है,यह स्पष्ट ही है। पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, चक्षुदर्शनी और संज्ञी जीवोंमें उसी प्रकार स्पर्शन प्राप्त होता है, इसलिए वह पञ्चेन्द्रिय आदिके समान कहा है। ___२३१. पृथिवीकायिक, जलकायिक, वनस्पतिकायिक और निगोद जीवोंमें चार घातिकर्मोके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । वेदनीय, आयु, नाम और गोत्रकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक और इनके अपर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक व इनके पर्याप्त और अपर्याप्त, पादर निगोद व इनके पर्याप्त और अपर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर और इनके अपर्याप्त जीवोंमें चार घातिकों के जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका भङ्ग क्षेत्र के समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सव लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अग्निकायिक जीवोंमें चार घातिकर्म और गोत्र कर्मके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष कर्मों के जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। बादर अनिकायिक और बादर अग्निकायिक अपर्याप्त जीवोंमें यही भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि
आयुकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। बादर अग्निकायिक पर्याप्त जीवोंमें चार घातिकर्म और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वेदनीय और नामकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग
१ आ. प्रतौ सव्वलो। बादरतेटअपज. इति पाठः । १४
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