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फोसणपरूवणा
२२७. मणुस०३ धादि०४ जह० खेतः। अज. लो. असं० सव्वलो० । वेद०-आउ०-णाम०-गोद० सव्वप०' अपज्जत्तभंगो। .
२२८. देवाणं धादि० ४ जह• अट्ट। अज० अट्ठ-णव० । वेद०-णामा०-गोद. जह० अज० अट्ठ-णव० । आउ० जह० अज० अढ० । एवं सव्वदेवाणं अप्पप्पणो फोसणं णेदव्वं ।
सर्व लोक घटित कर लेना चाहिए। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सामान्य तिर्यञ्चोंके समान ही है, क्योंकि वहाँ यह स्पर्शन पंचेन्द्रिय तिर्यंचनिककी अपेक्षासे ही कहा है। इनमें चार घातिकर्मों के अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण भी कहा है । सो इसका कारण इनका वर्तमान स्पर्शन मात्र दिखाना ही मुख्य प्रयोजन प्रतीत होता है। इनमें वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मका जघन्य अनुभागबन्ध परिवर्तमान मध्यम परिणामवाले जीवके यथायोग्य होता है। यतः ऐसे जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है और अतीतकालीन स्पर्शन सर्व लोक है। अतः यह स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। इन तीनों प्रकारके तिर्यञ्चोंमें आयुकर्मका स्पर्शन क्षेत्रके समान है,यह स्पष्ट ही है। अब रहे पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त जीव सो इनमें चार घाति कर्माका जघन्य अनुभागबन्ध सर्वविशुद्ध जीवके होता है। यतः यह स्पर्शन क्षेत्रके समान ही प्राप्त होता है, अतः वह उक्त प्रमाण कहा है। तथा इनका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत कालीन स्पर्शन सर्व लोक है, अतः इनमें चार घातिकर्मों के अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। इनमें वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मका जघन्य अनुभागबन्ध मध्यम परिणामोंसे होता है। यतः ऐसे जीवोंका वर्तमान कालीन स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत कालीन स्पर्शन सर्व लोक सम्भव है, अतः इनका यह स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है । आयुकर्मका भंग क्षेत्रके समान है,यह स्पष्ट ही है। यहाँ मनुष्य अपर्याप्त आदि कुछ मार्गणाओंमें इसी प्रकार स्पर्शनके जानने की है सो इन मार्गणाओंमें सब स्पर्शन पश्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंके समान प्राप्त होता है ,यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
२२५. मनुष्यत्रिकमें चार घाति कर्मोके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र कर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका भङ्ग अपर्याप्तकोंके समान है।
विशेषार्थ-मनुष्यत्रिकमें चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्वामित्व ओघके समान है,अतः स्वामित्व और इनके स्पर्शनका विचार कर वह यहाँ घटित कर लेना चाहिए जो मूलमें कहा ही है। मात्र वेदनीय आदि चार कर्मोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन अपर्याप्तकोंके समान कहा है सो यहाँ अपर्याप्तकोंसे मनुष्य अपर्याप्तकोंका ग्रहण करना चाहिए।
२२८. देवोंमें चार घाति कर्मोके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबट चौदह राजू क्षेत्र का स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और कुछ कम नौबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और कुछ कम नौवटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । आयु कर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कछ कम
१ आ. प्रतौ सव्वलो० इति पाठः ।
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