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फोसणपरूवणा २२५. णिरएसु घादि०४-गोद० जह० खेत्त० । अज० बच्चो० । वेद०णाम जह०' अज० छ० । आउ० खेत्त० । पढमपुढ० खेत्त । विदियादि याव छट्टि त्ति वेद०-णाम -गोद० जह० अज० एक-बे-तिण्णि-चत्तारि-पंच-चोदस० । धादि०४ जह० खेत । अज० वेदणीयभंगो। आउ० खेत्त० । सत्तमाए णिरयोघं ।
विशेषार्थ-चार घातिकर्मोंका जघन्य अनुभागबन्ध क्षपक श्रेणिमें होता है और गोत्रकर्मका जघन्य अनुभागबन्ध सम्यक्त्वके अभिमुख सातवीं पृथिवीके नारकी जीव करते हैं। यतः इस अपेक्षा से स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण प्राप्त होता है, इसलिए यह उक्त प्रमाण कहा है । इनके अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सब लोक है, यह स्पष्ट ही है। वेदनीय और नाम कर्मका जघन्य अनुभागबन्ध परिवर्तमान मध्यम परिणामवाले सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि सभी जीवोंके सम्भव है तथा आयुकर्मका जघन्य अनुभागबन्ध जघन्य अपर्याप्त निवृत्तिसे निर्वतमान मध्यम परिणामवाले सभी जीवोंके अपने त्रिभागमें सम्भव है। यतः ऐसे जीवोंका स्पर्शन सब लोक है, अतः इन तीन कर्मों के जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका सब लोक स्पर्शन कहा है। इन कर्मों के अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका सब लोक स्पर्शन है, यह स्पष्ट ही है। यहाँ अन्य जितनी मार्गणाएँ कहीं हैं उनमें ओघके समान स्पर्शन घटित होनेसे वह ओघके समान कहा है। मात्र इन मार्गणाओं में इस स्पर्शनको अपने-अपने स्वामित्वका विचार करके लाना चाहिए। कारण कि
ओषके समान स्वामित्वके गुणस्थान इन सब मार्गणाओंमें सम्भव नहीं हैं। इन मार्गणाओंमें स्वामित्वकी अपेक्षा गुणस्थान-भेद रहते हुए भी स्पर्शन ओघके समान प्राप्त होता है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
२२५. नारकियोंमें चार घातिकर्म और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वेदनीय, और नाम कर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयुकर्मका भंग क्षेत्रके समान है। पहली पृथिवीमें स्पर्शन क्षेत्रके समान है । दूसरीसे लेकर छठवीं पृथिवी तक के जीवोंमें वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने क्रमसे कुछ कम एक बटे चौदह राजु, कुछ कम दो बटे चौदह राजु, कुछ कम तीन बटे चौदह राजु, कुछ कम चार बटे चौदह राजु और कुछ कम पाँच बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन वेदनीय कर्मके समान है। आयुकर्मका भंग क्षेत्रके समान है। सातवीं पृथिवीमें सामान्य नारकियोंके समान भंग है :
विशेषार्थ-यहाँ इन बातों पर ध्यान देकर उक्त स्पर्शन प्राप्त करना चाहिए-१. सामान्य नारकियोंमें और सातवीं पृथिवीमें सम्यक्त्वके अभिमुख हुए जीवके गोत्रकर्मका जघन्य अनुभागबन्ध होता है, इसलिए इनमें गोत्र कर्मके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। २. शेष नरकोंमें गोत्रकमके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी वेदनीय और नामकर्मके जघन्य अनुभागबन्धके स्वामीके समान है, इसलिए इन नरकोंमें गोत्रकर्मकी परिगणना वेदनीय और नामकर्मके साथ की है। ३. सर्वत्र चार घाति कर्मोंका जघन्य अनुभागबन्ध असंयतसम्यग्दृष्टि सर्वविशुद्ध जीवके होता है, इसलिए सर्वत्र चार घाति कर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्पर्शन क्षेत्रके समान प्राप्त होनेसे वह उक्त प्रमाण कहा है और ४. प्रथमादि छह नरकोंमें गोत्र कर्मका तथा सर्वत्र वेदनीय और नाम कर्मका जघन्य अनुभागबन्ध मिथ्यादृष्टि जघन्य पर्याप्त निर्वृत्तिसे निवृत्तिमान
१ ता. प्रतौ वेउ (द०) इति पाठः ।
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