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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे २१८. णवूस. धादि०४ उक० छच्चों६० । अणु० सबलो । सेसं खेतः ।
२१९. आमि०-सुद०-ओधि० घादि०४ उक्क० अणु० अढ० । सेसाणं उक्क० खेत । अणु० अ० । एवं ओधिदं० सम्मादि०-खइग-वेदग०-उवसम० ।
२२०. संजदासंजद. सत्तण्णं क० उक्क० खेत० । अणु० छच्चों । आउ० खेत्तभंगो।
गोत्रकर्मका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध विशुद्ध कार्मणकाययोगी जीवोंके होगा, और ऐसे जीव ऊपर कुछ कम छह राजूका स्पर्श करेंगे, अतः इन तीन कर्मोकी अपेक्षा यहाँ उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजू कहा है । कार्मण काययोगमें सातों कर्मों के अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव सब लोक क्षेत्रका स्पर्श करते हैं,यह स्पष्ट ही है। कार्मणकाययोगके समय जीव अनाहारक होता है, अतः अनाहारकोंमें यह स्पर्शन कार्मणकाययोगके समान प्राप्त होता है, यह स्पष्ट ही है।
२१८. नपुंसकवेदी जीवोंमें चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष कर्मोका भंग क्षेत्रके समान है।
विशेषार्थ-चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक नपुंसकवेदी जीव नीचे कुछ कम छह बटे चौदह राजूका स्पर्श करते हैं, इसलिए इनका उक्त प्रमाण स्पर्शन कहा है। शेष स्पर्शन सुगम है।
२१६. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवों का स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्य. ग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये।
विशेषार्थ-असंयतसम्यग्दृष्टियोंका जो कुछ कम आठ बटे चौदह राजू प्रमाण स्पर्शन कहा है, वह आभिनिबोधिकज्ञानी आदि तीन ज्ञानवालोंमें चार घातिकों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धकी अपेक्षा और वेदनीय, नाम व गोत्रकर्मके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धकी अपेक्षा बन जाता है, अत: यह स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। शेष कथन स्पष्ट ही है। यहाँ सम्यग्दृष्टि आदि अन्य जितनी मार्गणाएँ गिनाई हैं, उनमें भी इसी प्रकार स्पर्शन प्राप्त होता है, अतः उनके कथनको आभिनिबोधिक ज्ञानी आदिके समान कहा है।
२२०. संयतासंयत जीवोंमें सात कोंके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह वटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । आयु कर्मका भंग क्षेत्रके समान है।
विशेषार्थ-संयतासंयतों में चार घातिकर्मोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध मिथ्यात्वके अभिमुख होने पर उत्कृष्ट संक्लेश परिणामोंसे होता है और वेदनीय, नाम व गोत्रकर्मका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध संयमके अभिमुख सर्वविशुद्ध परिणामोंसे होता है । यतः यह स्पर्शन क्षेत्रके समान ही उपलब्ध होता है,अतः उसे क्षेत्रके समान कहा । परन्तु इन सातों कर्मों के अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक संयतासंयतों का स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजू उपलब्ध होने में कोई बाधा नहीं है, अतः वह उक्त प्रमाण कहा है। शेष कथन स्पष्ट है।
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