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परिमाणपरूवणा
१८ परिमाणपरूवणा १९०. परिमाणं दुविहं-जह० उक्क० । उक्क० पगदं। दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० धादि०४ उक्क० अणुभा० केत्ति० ? असंखेज्जा । अणुक्क० अणंता। वेद०
उ०-णामा-गो० उक्क० संखेज्जा। अणुक्क० अणंता । एवं ओघभंगो कायजोगिओरालिय०-ओरालियमि०-णवंस०-कोधादि०४-अचक्खु०-भवसि०-पाहारग त्ति ।
१६१. णेरइएसु सत्तण्णं कम्माणं उक० अणु० असंखेज्जो। उ० उ. संखजा० । अणु० असंखेजा। अट्ठण्णं कम्मा० एवं सत्तसु पुढवीसु । णवरि सत्तमाए पुढवीए' आउ० उक्क० अणु० असंखेंज्जा। एवं णिरयभंगो सव्वअपज्जत्तगाणं सब्वदेवाणं [आणद याव]सन्वट्ठ०वज्जाणं सव्वविगलिंदि०-सव्वपुढ०-आउ०-तेउ०-वाउ.. बादर-सुहम-पज्जत्तापज्जत्ता० बादर०वणप्फदिपत्ते०पज्जत्तापजत्ता० वेउव्विय०सासण-सम्मामिच्छादिहि त्ति । आणद' याव सम्वट्ठ० त्ति आउ० दो वि पदा संखेजा। सव्वट्ठ०वजाणं सेसाणं कम्माणं असंखेंजा।।
१६२, तिरिक्खेसु अट्टण्णं कम्माणं उक्क० असंखेंजा। अणु० अणंता । एवं
१८ परिमाणप्ररूपणा १६०. परिमाण दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे चार घाति कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागके दन्धक जीव कितने हैं? असंख्यात हैं। अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव अनन्त हैं। वेदनीय, आयु, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव संख्यात हैं। अनुस्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव अनन्त हैं। इसी प्रकार ओघके समान काययोगी, औदारिकाययोगी, औदारिक मिश्रकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, अचक्षुदर्शनी, भव्य, और आहारक जीवोंके जानना चाहिये।
१६१. नारकियोंमें सात कर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव संख्यात हैं तथा अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। आठों कर्मों के पाश्रयसे इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि सातवीं पृथिवीमें आयुकर्मके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार नारकियोंके समान सब अपर्याप्त, आनत कल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंके सिवा सब देव, सब विकलेन्द्रिय, सब पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक
और वायुकायिक तथा इनके बादर और सूक्ष्म तथा पर्याप्त और अपर्याप्त, बादर वनस्पति कायिक प्रत्येकशरीर और उनके पर्याप्त और अपर्याप्त, वैक्रियिककाययोगी, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिये । नत कल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें आयुकर्मके दोनों ही पवाले जीव संख्यात हैं। तथा सर्वार्थसिद्धिको छोड़कर शेषमें शेष कर्मों के दोनों ही पदवाले जीव असंख्यात हैं।
१६२. तिर्यचोंमें आठों कर्मोके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीव असंख्यात हैं। अनुत्कृष्ट
१ ता० प्रतौ सत्तएणं क० उ० अणु० असंखेजा। श्राउ० उ० संखेजा। अणु० असंखेजा । सेता अट्रएणं कम्मा० एवं, श्रा० प्रतौ सत्तएणं कम्माणं उक्क० अणु० असंखेजा। एवं इति पाठः । २ ता० प्रतौ सत्तमापदवीये. इति पाटः । ३ ता० प्रतौ अणाद ( आणद ) इति पाठः ।
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