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महाणुभागबंधाहियारे
२११. मणुस ० ३ सत्तण्णं क० उक्क० खेत्तभंगो । अणुक्क० लोगस्स असंखेजदिभागो सव्वलोगो वा । आउ० खेराभंगो। देवेसु घादि २४ उक्क० अणु० अट्ट -णवचौ० । वेद० - णामा- गो० उक्क • अचों | अनु० अट्ठ-णवचों० । आउ० उक्क० अणु० अट्ठचों० । एवं सव्वदेवाणं अप्पप्पणी फोसणं णेदव्वं ।
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२१२. एइंदिए घादि०४ उक्क० अणुक्क० सव्वलो० । वेद०-णामा० उक्क० लो० संखे | अणु० सव्वलो० । आउ०- गोद० उक्क० लो० असंखे० । अणु० सव्वलो० । एवं बादरपञ्जत्तापञ्ज० | णवरि आउ० उक्क० लोग० असं० । अणु० लो० संखेज० । सव्व
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२११. मनुष्यत्रिमें सात कर्मों के उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है। तथा अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक है । श्रायु कर्मका भङ्ग क्षेत्रके समान है । देवों में चार घाति कर्मके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है | वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ वटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है तथा अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आयु कर्मके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सब देवोंके अपना-अपना स्पर्शन जानना चाहिये ।
विशेषार्थ - मनुष्य त्रिकमें चार घातिक्रमका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध उत्कृष्ट संक्लेश युक्त मिध्यादृष्टि और वेदनीय, नाम व गोत्रका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध क्षपकश्रेणिमें होता है । यतः यह स्पर्शन क्षेत्र के समान ही प्राप्त होता है, इसलिए इसे क्षेत्रके समान कहा है । इनमें इन कर्मके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्पर्शन तथा आयुकर्मका दोनों प्रकारका स्पर्शन स्पष्ट ही है । देवों में वेदनीय, नाम और गोत्र कर्मका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध मारणान्तिक समुद्घातके समय सम्भव नहीं है, इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और चार घाति कर्मोंके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवों का स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजू प्रमाण कहा है। इन सातों कर्मोंका अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध किसी भी अवस्था में सम्भव है, इसलिए इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजू कहा है। आयुकर्मका उत्कृष्ट या अनुत्कृष्ट अनुभागवन्ध मारणान्तिक समुद्घात के समय सम्भव नहीं है, इसलिए इसके उक्त दोनों प्रकार के अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू कहा है । यह तो सामान्य देवों की अपेक्षा स्पर्शन हुआ। इसी प्रकार सर्वत्र देवों में अपने-अपने स्पर्शनका विचार कर वह जिस कर्मकी अपेक्षा जहाँ जो सम्भव हो, ले आना चाहिए।
२१२. एकेन्द्रियों में चार घातिकर्मों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । वेदनीय और नामकर्मके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने लोकके संख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है तथा अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । आयु और गोत्रकर्मके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने लोकके श्रसंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है तथा अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार बादर एकेन्द्रिय तथा उनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंने लोकके असख्यातवें १ प्रा० प्रतौ सन्नणं क० उ० खेत्तभंगो । देवेषु इति पाठः ।
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