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सण्णियासपरूवणा अचक्खुदं० ओधिदं० सुक्कले०-भवसि०-सम्मादि०-खइग०-उवसम०-सण्णि-आहारग ति । णवरि तिण्णिवेद०-तिण्णिकसा० बेद० उक्क० ० मोह० णिय० बंध० अणंतगुणहीणं बंधदि । एवं सामाइ०-छेदोव० ।
१७३. णिरएसु णाणाव० उक्क० अणु० बंध० दंसणा०-मोह०-अंतरा० णिय० बं०, तं तु 'छट्ठाणपदिदं बंधदि । वेद०-णामा-गोदा० णि० बं० णि० अणु० अणंतगुणहीणं० । आउ० अबंध० । एवं तिण्णिधादीणं । वेद० उक्क० बं० धादि०४ णि० बं० णि अणंतगुणहीणं० । आउ० अबंध० । णामा-गोदा० णिय० बं० तं तु छट्ठाणपदिदं बं०। एवं णामा-गोदाणं । आउ० उक्क. सत्तण्णं क० णि बं० णिय० अणु० अणंतगुणहीणं० ।
१७४. अवगदवे० णाणावर० उक्क० ब० दसणा०-मोह० अंतरा०णि बं० णि. उक्क० । वेद०णामा-गोदा० णि० बं० णिय० अणु० अणंतगुणहीणं० । एवं तिणं घादीणं । वेद० उक्क० बंधं० तिण्णिघादीणं णिय० बं० णिय० अणु० अणंतगुणहीणं० । णामा-गोदा० णि० बं० णि० उक्कस्सं । एवं णामा-गोदाणं । निबोधिकाानी, श्रुतज्ञानी; अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, भव्य, सम्यग्दृष्टि, क्षायिक सम्यग्दृष्टि, उपशम सम्यग्दृष्टि, संज्ञी और आहारक जीवोंके जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि तीन वेदवाले और तीन कषायवाले जीवोंमें वेदनीयके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव मोहनीयका नियमसे बन्ध करता है जो नियमसे अनन्तगुणे हीन अनुभागका बन्ध करता है। इसीप्रकार सामायिक संयत और छेदोपस्थापना संयत जीवोंके जानना चाहिये ।
१७३. नारकियोंमें ज्ञानावरणके उत्कृष्ट अनुभागका बंध करनेवाला जीव दर्शनावरण.मोहनीय और अन्तराय कर्मका नियमसे बन्ध करता है, किन्तु वह छह स्थान पतित अनुभागका बन्ध करता है। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मका नियमसे वन्ध करता है, जो नियमसे अनुत्कृष्ट अनन्तगुणे हीन अनुभागका बन्ध करता है। आयुकर्मका बन्ध नहीं करता। इसी प्रकार तीन घाति कर्मोकी अपेक्षा सन्निकष जानना चाहिये । वेदनीय कमेके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव चार घातिकर्मोका नियमसे बन्ध करता है। जो नियमसे अनुत्कृष्ट अनन्तगुणे हीन अनुभागका बन्ध करता है, वह
आयुकर्मका बन्ध नहीं करता । नाम और गोत्रकर्मका नियमसे बन्ध करता है, किन्तु वह छह स्थान पतित अनुभागका बन्ध करता है। इसीप्रकार नाम और गोत्रकर्मकी अपेक्षा सन्निकर्ष जानना चाहिये । प्रायुकर्म के उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव सात कर्मोंका नियमसे बन्ध करता है, जो नियमसे अनुत्कृष्ट अनन्तगुणे हीन अनुभागका बन्ध करता है।
१७४. अपगतवेदी जीवोंमें ज्ञानावरणके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय कर्मका नियमसे बन्ध करता है। जो नियम से उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है । वेदनीय नाम और गोत्रकर्मका नियमसे बन्ध करता है, जो नियमसे अनुत्कृष्ट अनन्तगुणे हीन अनुभागका बन्ध करता है। इसी प्रकार तीन घाति कर्मोंकी अपेक्षा सन्निकर्ष जानना चाहिये । वेदनीय कर्मके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव तीन घातिकर्मों का नियम से बन्ध करता है । जो नियम से अनुत्कृष्ट अनन्तगुणे हीन अनुभागका बन्ध करता है। नाम और गोत्रकर्मका नियमसे बन्ध करता है। जो नियमसे उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है। इसी प्रकार नाम और गोत्रकर्मकी अपेक्षा सन्निकर्ष जानना चाहिये।
१ मूलप्रतौ 'छसंणणं पदिदं' इति पाठः । Jain Education International
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