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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे अंतो० वणप्फदि० तिण्णि वाससहस्साणि सादि० । अणु० जह० एग०, उक्क० बावीसंवास० सादि॰ [अंतो०] दस वाससहस्सा० सादि० अंतो० ।
१२५. पुढवि०-आउ०-तेउ० वाउ०-वणप्फदिपत्ते सत्तण्णं क० उक्क० जह० एग०, उक्क० असंखजा लोगा। बादर० कम्मद्विदी। पजत्ताणं संखेज्जाणि बाससहस्साणि । सव्वाणं अणु० जह० एग०, उक्क० बेसम० । आउ० उक्क० जह० एग०, उक्क० सत्त वाससहस्साणि सादि० बे वाससह. सादि० तिणि वाससह. सादि०। अणु० जह. एग०, उक्क० अप्पप्पणो पगदिअंतरं । तेउ०-बाउ० जह० एग०, उक्क० कायट्ठिदी० । अणु० अप्पप्पणो पगदिअंतरं ।
वर्ष और सूक्ष्म तथा निगोद जीवोंमें अन्तर्मुहूर्त है। तथा वनस्पतिकायिक जीवोंमें उत्कृष्ट अन्तर साधिक तीन हजार वर्ष है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक बाईस हजार वर्ष, अन्तर्मुहूर्त, साधिक दस हजार वर्ष और अन्तर्मुहूर्त है।
विशेषार्थ-एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय और बाद एकेन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंमें बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त जीवोंकी मुख्यतासे आयुकर्मके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर काल प्राप्त किया गया है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त और निगोद पर्याप्त जीवोंकी उत्कृष्ट भवस्थिति अन्तर्मुहूर्त तथा वनस्पतिकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट भवस्थिति दस हजार वर्ष है। इसलिए इनमें इस कालको ध्यानमें रखकर आयुकर्मके उत्कृष्ट और अनुकृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तरकाल प्राप्त किया गया है। शेष अन्तरकाल लाते समय स्वामित्व और अपनी-अपनी कायस्थितिको ध्यानमें रखकर वह ले आना चाहिए। कोई विशेषता न होनेसे यहाँ उसका अलगसे निर्देश नहीं किया। मात्र जहाँ कायस्थिति अधिक है और अन्तरकाल असंख्यात लोक प्रमाण कहा है वहाँ जो विशेषता है उसका निर्देश हम काल प्ररूपणाके समय कर आये हैं इसलिए उसे जानकर यह अन्तरकाल घटित कर लेना चाहिए।
१२५. पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर जीवोंमें सात कर्मों के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है । इनके बादरों में उत्कृष्ट अन्तर कर्मस्थिति प्रमाण है। तथा इनके पर्याप्तकोंमें उत्कृष्ट अन्तर संख्यात हजार वर्ष है । इन सबके अनु कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक सात हजार वर्षे, साधिक दो हजार वर्ष और साधिक तीन हजार वर्ष है। अनुकृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अपने अपने प्रकृतिबन्धके अन्तरके समान है। अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंमें उत्कृष्ट अनुभागवन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कायस्थिति प्रमाण हैं। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर अपने अपने प्रकृतिबन्धके अन्तरके समान है।
विशेषार्थ-यहाँ पृथिवीकायिक, जलकायिक और वनस्पतिकायिक जीवोंकी अपेक्षा अग्निकारिक और वायकायिक जीवोंमें आयुकर्म के उत्कृष्ट अनुभागवन्धके उत्कृष्ट अन्तरकालमें कुछ विशेषता कही है । उसका कारण यह है कि पृथिवीकायिक, जलकायिक और वनस्पतिकायिक आयुकर्मका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करते समय मनुष्यायुका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करते हैं इसलिए उनकी पृथिवीकायिक आदि पर्याय बदल जाती है, अतः इनमें एक पर्यायकी मुख्यतासे ही आयुकर्मके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तरकाल उपलब्ध किया गया है। किन्तु अग्निकायिक और वायकायिक जीवोंकी यह बात नहीं है। वे नियमसे तिर्यञ्चायका ही वन्ध करते हैं। इसलिए इनमें
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