Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन काद० एवं कुव० में इतना साम्य होते हुए भी यह समझना भूल होगी कि उद्द्योतनसूरि ने बाण का अनुकरण किया है। दोनों कवियों के अपने अलग व्यक्तित्व थे। योगदान भी भिन्न-भिन्न हैं। यह समानता तो समसामयिक रुचि और साहित्यिक प्रवृत्तियों के प्रति लेखक की सजगता का ही प्रभाव कहा जायेगा।
कुवलयमालाकहा की अन्य कथाग्रन्थों से तुलना के सम्बन्ध में डा० ए० एन० उपाध्ये ने अपने इण्ट्रोडक्शन (पृ० ८६-८८) में प्रकाश डाला है, यद्यपि किसी भी ग्रन्थ के मूल उद्धरण नहीं दिये हैं। अतः उस सबकी यहाँ पुनरावृत्ति करना ठीक नहीं। इतना कहना पर्याप्त है कि धार्मिक पृष्ठभूमि एवं शैलीगत समानता होते हुए भी उद्द्योतनसूरि ने प्राचीन कथाकारों को अपेक्षा अधिक सूक्ष्म और प्रामाणिक सूचनाएँ अपने ग्रन्थ में दी हैं। विशेषकर भाषाविज्ञान एवं सांस्कृतिक सामग्री के क्षेत्र में । उनका विस्तृत विवेचन अगले अध्यायों में किया गया है।