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कविवर बुचराज
कवि ने अपनी किसी भी कृति में तत्कालीन शासक का उल्लेख नहीं किया मोर न उनके बछे पुरे शास:: नारे में लिदा । नार पड़ता है कि उस समय देश में कोई भी शासक कवि को प्रभावित नहीं कर सका था इसलिए कवि ने उनका नामोल्लेख करने की अावश्यकता ही नहीं समझी । मयराजुज्झ (मदन युद्ध)
मयणजुज्झ कवि की संवतोल्लेख वाली प्रथम रचना है । यह अपभ्रंश भाषा प्रभावित हिन्दी कृति है। हिन्दी अपभ्रश का किस प्रकार स्थान ले रही थी यह कृति इसका स्पष्ट उदाहरण है । मदनयुद्ध एक रूपक काव्य है जिसमें प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव एवं कामदेव के मध्य युद्ध होने पर भगवान ऋषभदेव की उस पर विजय बतलाई गयी है।
__ मदनयुद्ध कवि की प्रथम रचना है यह तो स्पष्ट नहीं कहा जा सकता क्योंकि उनकी अधिकांश रचनाओं में रचना काल दिया हृमा नहीं हैं। फिर भी ऐसा लगता है कि यह उनकी प्रारम्भिक रचना है जिसमें उन्होंने अपभ्रंश भाषा का प्रयोग किया है और इसके पश्चात् जब केवल हिन्दी की ही रचनाओं की मांग हुई तो कवि ने अन्य रचनामों में केबल हिन्दी का ही प्रयोग किया। इस काव्य का रचना काल संवत् १५८९ प्राश्विन शुक्ला प्रतिपदा शनिवार है। कृति में रचना स्थान का कोई उल्लेख नहीं मिलता।
इस रूपक काव्य में १५६ पद्य हैं। जो विभिन्न छन्दों में निबद्ध है । इन छन्दों में गाथा, रड. मडिल्ल, दोहा, रंगिका, षट्पद कविस भादि के नाम उल्लेखनीय हैं। भाषा की दृष्टि से हम इसे हिगल की रचना कह सकते हैं। शब्दों पर जोर देने की दृष्टि से उन्हें अगलात्मक बनाया गया है । जैसे निर्माण के लिए रिणवाणि, पैदा होने के लिए उपज्जइ. एक के लिए इकु (१७) अधर्म के लिए अषम्म आदि इसके उदाहरण है । काव्य की कथा बड़ी रोचक एवं शिक्षा पद है । कथा भाग का सारांश निम्न प्रकार है। कथा
प्रारम्भिक मंगलाचरण के पश्चात् कवि ने कहा है कि काया रूपी दुर्ग में चेतन राजा निवास करते हैं । मन उनका मंत्री है। प्रवृत्ति और नित्ति ये वो उसकी स्त्रियां हैं। दोनों के ही एक-एक पुत्र उत्पन्न होता है जिनके नाम मोह एवं
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राह विक्कम तराज संवतु नवासिय पनरहसे सरद कृति आसवज वखाणिज । तिथि पडवा मुकलु पषु, सनि सुचारू फह नखित आरिपज 11
मयप जुगक