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ॐ अप्रमाद-संवर का सक्रिय आधार और आचार 8 २१ *
की तीव्र आकांक्षा थी-परमात्मा (शुद्ध आत्मा) को पाने की। वह एक फकीर के झोंपड़े पर पहुँच गया और अपनी जिज्ञासा प्रगट की। शर्त यह रखी कि “मैं जो कुछ भी तुम्हारे प्रशिक्षण के लिये करूँगा, तुम्हें चुपचाप उसे श्रद्धा से स्वीकार करना होगा, तर्क-वितर्क कुछ भी नहीं करना होगा।" सम्राट् की स्वीकृति पाने के बाद फकीर ने कहा-“इस प्रशिक्षण का पहला पाठ तीन महीने तक चलेगा। मेरा प्रशिक्षण पाठ यह होगा कि कल सुबह तू कुछ भी कर रहा होगा, मैं लकड़ी की तलवार लेकर पीछे से तुम पर हमला कर दूंगा। मैं इसकी कोई जाहिरात रेडियो, समाचार-पत्र या अन्य किसी तरीके से नहीं करूँगा।" इस प्रशिक्षण से मेरा मतलब है-“अहंकारादि प्रमाद न मालूम कब हमला कर दे, उससे जागरूक रहने की यह शिक्षा है।" सम्राट् इसके लिए अभ्यस्त नहीं था। जिंदगी में पहली दफा उसने अनुभव किया कि जागृति कैसे रखी जाती है। पहले ७ दिनों में सम्राट की पीठ पर दिन में कभी भी लकड़ी की तलवार की चोट पड़ी तो वह जाग्रत रखने वाली बनी। उसे अब ख्याल होने लगा कि अब हमला होने वाला है। १५ दिनों में तो बूढ़े फकीर के पैर की धीमी-सी आहट होते ही उसे सुनाई पड़ जाती और वह तुरंत सँभलकर अपना बचाव कर लेता। इस प्रकार क्रमशः तीन महीने दिन में हमले के पूरे हो गए। अब हमला करना मुश्किल हो गया, किसी भी हालत में हमला किया जाता सम्राट् सावधान हो जाता और उसे रोक लेता।' अब गुरु ने कहा-“तेरा एक पाठ पूरा हो गया। फकीर के पूछने पर सम्राट ने अपना अनुभव बताया कि इन तीन महीनों में मैं उत्तरोत्तर अधिकाधिक सावधान, जाग्रत और बाहोश रहने लगा। इस अप्रमाद के पाठ से मेरा मन निर्विचार-निर्विकार रहने में अभ्यस्त हो गया। मेरे अहंकारादि भी शान्त हो गए हैं। मैं एकदम जाग्रत होकर जीने लगा हूँ।"
वृद्ध फकीर ने कहा-“कल से तुम्हारा दूसरा पाठ शुरू होगा। इसमें रात में भी हमला शुरू होगा। तू सोया रहेगा, तब भी दो-चार दफा हमला करूँगा। अब रात को भी सावधान रहना।" सम्राट ने पूछा-"गुरुजी ! नींद में कैसे सावधान रहूँगा? नींद पर मेरा क्यां वश है?' गुरु ने कहा-नींद पर भी वश है। तुझे पता नहीं, नींद में भी तेरे भीतर कोई जागता रहता है और वह होश में होता है। चादर सरक जाती है तो नींद में भी किसी को पता चल जाता है कि चादर सरक गई है। जाग्रत रहने का एक ही सूत्र है-चुनौती। भीतर जितनी बड़ी चुनौती होती है, उतना ही बड़ा जागरण हो जाता है। हम चुनौती खड़ी करेंगे, भीतर जो चेतना सोई है, वह जागनी शुरू हो जाएगी।" दूसरे दिन से ही सम्राट् सोया रहता, तभी फकीर के हमले शुरू हो जाते। ८-१० दिन तक तो जरा असावधानी ही रही। लेकिन महीना
१. 'आत्मरश्मि', अगस्त १९९१ से संक्षिप्त
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