Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
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(दुर्भाग्यवश वे अब नहीं रहे। ऊंचे सरकारी अधिकारी पद पर आ गये थे ) काकी भी कुछ छोटी उम्र में ही चल बसीं।
राजनैतिक, सामाजिक और साहित्यिक समस्याओं के बीच खुशमिजाज रहना काकासाहेब का स्वभाव रहा है। लोगों के साथ उनके वार्तालाप सुनने से काफी ज्ञान और आनन्द मिलता था।
काकासाहेब ने देश-विदेश का काफी भ्रमण किया है। कई पुस्तकें लिखी हैं। कितने ही प्रवचन दिये हैं। उनकी शैली हमेशा सरल, बुद्धिवर्धक और रोचक रही है । स्वयं गुजराती न होने पर भी उन्होंने गुजराती भाषा को संपूर्णतया अपनाया है।
गुजरात काठियावाड़ में काकासाहेब के भक्त और प्रशंसक सैकड़ों-हजारों है। हमारे गांधी-परिवार के लोग उनमें से कुछ हैं। दिल्ली आते थे। हमारे घर नाम मात्र के लिए ठहरते थे, अधिकांश समय काकासाहेब के साथ ही बिताते थे। मुझे एक बार राजघाट पर काकासाहेब का प्रवचन सुनने का सौभाग्य मिला । विषय मुझे बहुत पसन्द आया। काकासाहेब ने कहा, "रामायण में उत्तर काण्ड बाद में जोड़ा गया है । रामचन्द्र जैसा विवेका, प्रेमल, शरणागत रक्षक कभी भी ऐसा नहीं बदल सकता था कि सीता जैसी परम पवित्र पत्नी को दूसरी बार अग्नि-परीक्षा का आदेश दे । कवि वाल्मीकि ने ऐसी कल्पना कभी नहीं की होगी। किसी एक अन्य कवि ने उत्तर काण्ड को जोड़ दिया है। चतुराई के साथ।" खैर, इस विवादास्पद बात को यहीं छोड़ देते हैं। ___काकासाहेब की छोटी बहू (बाल कालेलकर की पत्नी) की मृत्यु दिल्ली में अचानक हो गई। दो छोटे बच्चे थे। काकासाहेब अपनी अवस्था और कामों को भूलकर उन दो बच्चों की देखभाल के लिए और मनोरंजन के लिए नित्य उनके घर जाकर, काफी समय बिताकर, आते थे। तुरन्त एक और धक्का लगा। बड़े पुत्र सतीश कालेलकर की पत्नी का भी विदेश में निधन हो गया। मैं काकासाहेब से मिलने गई थी। उनके असाधारण धीरज को देखकर चकित रह गई।
हम सबको कुमारी सरोज बहन नाणावटी को बधाई देनी चाहिए। क्योंकि उनकी निष्ठापूर्वक देखभाल से ही पूज्य काकासाहेब का यह जन्मदिन मना पा रहे हैं। प्रभु से प्रार्थना करें कि हमारे इस गुरुजन को जितने और नीरोग स्वस्थ वर्ष दे सकें, दें, उनके अस्तित्व से हम प्रेरणा और शक्ति पाते रहें।
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प्रेम और प्रोत्साहन के प्रदाता
मदालसा नारायण
पूज्य पिता जमनालालजी के साथ काकासाहेब की घनिष्ठता अप्रतिम थी। इसलिए हमें अपने अत्यन्त निकट के स्वजन के समान ही गहरा स्नेह काकासाहेब से सदा मिलता रहा है। उनके साथ दक्षिण भारत की यात्रा का सुअवसर मुझे सदा मिला। उड़ीसा और आसाम का प्रवास भी काकासाहेब के साथ करने में बड़ा आनन्द प्राप्त हुआ। पूना के निकट सिंहगढ़ की सैर भी बड़ी ऐतिहासिक रही।
दिल्ली में मेरे परमपूज्य पितास्वरूप श्वसुरजी बाबू श्री धर्मनारायणजी का जन्मदिन और पू० काकासाहेब का जन्मदिन १ दिसम्बर १६४८ को हमने एक साथ दोनों महान गुरुजनों की प्रत्यक्ष
३६ / समन्वय के साधक