Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
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सन् १९२४ से गांधी आश्रम में बापूजी के सान्निध्य में रहने लगा । स्वर्गीय इमाम साहब के साथ पारिवारिक सम्बन्ध के कारण आश्रमवासी बना तब काकासाहेब के प्रत्यक्ष परिचय में आया । बापू के आश्रम
जो अनेक महापुरुष अन्तेवासी होकर बसे थे, उनमें जिनकी ताजगी, स्वस्थता और भाषा की मोहकता मन को जीत लेती थी, उनमें श्री दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर थे । सब आश्रमवासी उनको काकासाहेब के नाम से पहचानते थे । काकासाहेब का परिचय जैसे-जैसे बढ़ता गया, उनके प्रेमल स्वभाव और वात्सल्य का लाभ मिलता गया, वैसे-वैसे उनको दिया हुआ काकासाहेब का विरुद कितना यथार्थ था, उसकी प्रतीति हुई । हम आश्रमवासियों के काकासाहेब साहित्यिक क्षेत्र में भी 'काकासाहेब' के नाम से पहचाने जाने लगे ।
काकासाहेब और स्वर्गीय इमाम साहब घनिष्ठ मित्र थे। बापूजी के कार्यक्रम और प्रवृत्तियों में निष्ठापूर्ण सहयोगी थे | मैत्री के नाते दोनों एक-दूसरे के बहुत निकट थे । इन महानुभावों की मैत्री का लाभ मुझे और मेरे समस्त परिवार को मिला। काकासाहेब की तेजस्वी बुद्धिमता और उच्च विद्वता के संस्कार हमारे कुटुम्ब के छोटे-बड़े सबको मिलते रहे ।
Satara के लेखों और पुस्तकों का आकर्षण बढ़ता ही रहा। गांधीजी के सत्याग्रह आंदोलनों में बंदी होकर साबरमती कारावास में रह आने के बाद काकासाहेब की 'ओतराती दिवालो' (उत्तर की दीवारें ) पुस्तक ने जेल-वास के जीवन के अनुभवों को ताजा करा दिया। वह पुस्तक बार-बार पढ़ लेने का मोह छूटता नहीं । आज अनेक दशकों के बाद भी वह पुस्तक पढ़ते, ऐसा लगता है, साबरमती जेल में बिताये दिवसों की चित्र कथा ही देख रहे हों। जेल-वास के दरमियान जेन की शुष्क दीवारों में भी जिस भव्यता का दर्शन हो सकता है, उसका भान बाहर आने के बाद 'ओतराती दिवालो' ने कराया। गांधी आश्रम के उत्तर की ओर आने वाली उन दीवारों में सत्याग्रही कैदी होकर मैंने कई महीने बिताये थे, किन्तु वहां के जीवन की नाजुक बारीकियां देखने-समझने की शक्ति तो काकासाहेब की किताब ने ही दी ।
अनेक प्रदेशों में काकासाहेब ने मानसिक प्रवास कराया है। उनकी प्रवास कथा पढ़ते-पढ़ते उन-उन प्रदेशों में स्वयं यात्रा करने का भाव और संतोष प्राप्त होता है। 'हिमालयो ना प्रवास' (हिमालय की यात्रा ) जीवन की भव्यता के साथ हिमाच्छित प्रदेश की भव्यता का सुन्दर सुमेल होते देखा है । प्रकृति के साथ तादात्म्य होने की मनोकामना को काकासाहेब के जीवन को आनन्द से पढ़कर संतोष मिला है। भारत में बहती हुई नदियां मानो समग्र देश पर प्रकृति का अनुग्रह हैं। धरती का रस कसकर वे सार तत्व देती हैं। उसकी गोद में बसे लोगों को जीवन और ऐश्वर्य प्रदान करती हैं। काकासाहेब द्वारा प्रवाहित लोकमाताएं हमारे संस्कार और संस्कृति को जीवन देती हुई धीर गम्भीर बह रही हैं, और सदियों तक बहती रहेंगी । काकासाहेब ने गुजराती भाषा और साहित्य को समृद्ध किया है। उनकी देन समग्र देश के लिए विशेषकर गुजरात के लिए अत्यन्त पावक और उपकारक है । काकासाहेब का स्थान ऋषि-मुनियों की पंक्ति में है । वह जीवन के ९४ वर्ष पूरे करके ६५ वें वर्ष में प्रवेश कर रहे है, इस शुभ प्रसंग पर परवरदिगारे आलम से दुआ करता हूं कि वर्षों तक उनके आशीर्वाद और उनकी ममता हम सबको मिलती रहे |O
व्यक्तित्व : संस्मरण / ६१