Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
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देते थे। गांधी-निष्ठा के कारण मुझसे हो सका, उतना किया। एक मजे की बात यह कि मैंने पंडित सुन्दरलालजी की सूचना के अनुसार दो लिपिवाली हिन्दुस्तानी का प्रचार शुरू करने के बाद मैंने सुन्दरलालजी को मदद के लिए बुलाया । उन्होंने ठंडे दिल से कहा, "मैं तो अब दोनों लिपियां छोड़कर रोमन लिपि चलाने के पक्ष में ।" मैंने अपने मन को समझा कि सारी स्थिति समय-समय पर सविस्तार समझाने के बाद गांधीजी ने जो नीति चलाई है, वही देश के लिए हितकर होगी ।
इसलिए मैंने अन्त में तय किया कि हिन्दुस्तानी प्रचार के नाम से हिन्दी उर्दू शैली का मिश्रण और नागरी उर्दू लिपि का प्रचार इन दोनों बातों को मैं इनकार भी नहीं करूंगा और प्रचार भी नहीं करूंगा । किन्तु उसके पीछे रही हुई भारत की महान् नीति 'सर्वधर्म समभाव' को अपना लूंगा और सारे देश में घूमकर सर्वधर्म समभाव की जगह पर 'सर्व-धर्म-ममभाव' का प्रचार करूंगा। इसमें केवल इस्लाम ही नहीं, पारसी, यहूदी, ईसाई इन सब धर्मों के प्रति समभाव विकसित करने की बात देश के सामने रखूंगा।
गांधीजी के देहान्त के बाद संविधान में राष्ट्रभाषा का प्रस्ताव मंजूर होना मुझे बराबर याद नहीं विनोबा ने राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार केवल नागरी लिपि द्वारा करने के लिए प्रोत्साहन दिया। अभी-अभी उन्होंने भारत की सभी भाषाओं के लिए एक नागरी लिपि चलानी चाहिए, ऐसा प्रचार शुरू किया है और साथ ही यह भी जाहिर किया है कि नागरी सुधार का काम इस समय हम व्यक्ति तक सीमित रखें। रूड़ नागरी को भारत की सब भाषा स्वीकार करेंगी, उसके बाद नागरी सुधार की बात सोची जायगी।
भारत भाग्य विधाता हमारे पास से जो और जितनी सेवा मांगे, उतनी दे देना, ओर चित्तवृत्ति को अलिप्त रखना और हाथ में लिए हुए कामों के पीछे पूरी शक्ति लगा देना, इतना ही अपने हाथ में है ।
"कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदा चन । मा कर्मफलहेतुर्भूर्या ते संगोस्तु अकर्मणिः ॥ "
१८ :: साहित्य समृद्धि, भाव-शक्ति
सन् १९२० के २ अप्रैल की बात होगी । अहमदाबाद में गुजराती साहित्य सम्मेलन बड़ी धूम-धाम चल रहा था। प्रख्यात साहित्यिक रा० ब० कोतवाला अध्यक्ष थे। रवीन्द्रनाथ का गांधीजी के साथ प्रेम संबंध गुजरात 'में सर्व विदित था । इसलिए लोगों ने श्री रवीन्द्रनाथ को साहित्य सम्मेलन के आदरणीय अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था। स्वाभाविक तौर पर वे गांधीजी के अतिथि होकर आश्रम में रहे थे । हम आश्रमवासियों में से कई लोग कभी-न-कभी शान्तिनिकेतन में रहे हुए थे । इसलिए कविवर का और उनके साथियों का आतिथ्य करते हमें विशेष आनन्द था । रवि बाबू एक सुन्दर भाषण अंग्रेजी में लिखकर लाये थे । भाषण का नाम था – 'एडवेन्ट ऑफ स्प्रिंग' (वसंत का आगमन ) भाषण खुले में रखा था । अध्यक्ष स्थान पर साक्षर श्री नरसिंह राव भोलानाथ थे। रवीन्द्र की कोकिल कंठी वाणी-सारा भाषण उन्होंने इतने सुन्दर तरीके से पढ़कर सुनाया कि सुननेवाले सब मंत्र-मुग्ध हो गये उनका शान्त उन्माद देखकर जिन लोगों को अंग्रेजी नहीं आती थी, वे अस्वस्थ हुए। सभा के अध्यक्ष से उन्होंने विनती की, “कविश्री ने क्या कहा, उसका सार तो हमें बताइए।" उत्साह मुग्ध बने हुए नरसिंहराव ने कहा, "इतनी सुन्दर भाषा और काव्यमय विचारों का सार
बढ़ते कदम : जीवन-यात्रा / १६६