Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
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कारण है कि मेरे लिए वर्षा ऋतु सब ऋतुओं में उत्तम ऋतु है। इन चार महीनों में आकाश के देव भले ही सो जाएं, मेरा हृदय तो सतर्क होकर जीता है, जागता है और इन चार महीनों के साथ मैं तन्मय हो जाता हूं।
'मधुरेणं समापयेत्' के भ्याय से वसन्त ऋतु का अन्त में वर्णन करने के लिए कालिदास ने 'ऋतुसंहार' का प्रारम्भ ग्रीष्म ऋतु से किया। मैं यदि 'ऋतुभ्यः' की दीक्षा लूं और अपनी जीवन निष्ठा व्यक्त करने लगूं, तो वर्षा ऋतु से एक प्रकार से प्रारम्भ करके फिर और ढंग से वर्षा ऋतु में ही समाप्ति करूंगा ।'
१. 'जीवन-सीता' पुस्तक से
उंचल्ली का प्रपात
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जोग के बिलकुल ही सूखे प्रपात के इस बार के दर्शन का गम हलका करने के लिए दूसरा एकाध भव्य और प्रसन्न दृश्य देखने की आवश्यकता थी ही। कारबार जिले के सर्व संग्रह - गजेटियर के पन्ने उलटतेउलटते पता चला कि जोग से थोड़ा ही घटिया उंचल्ली नामक एक सुन्दर प्रपात सिरसी से बहुत दूर नहीं है । लशिग्टन नामक एक अंग्रेज ने सन् १८४५ में खोज की थी, मानो उसके पहले किसी ने इसे देखा ही न हो ! अंग्रेजों की आंखों पर वह चढ़ा कि दुनिया में उसकी शोहरत हो गयी !
यह उंचल्ली कहां है ? वहां किस ओर से जाया जा सकता है ? हम कैसे जायं ? हमारे कार्यक्रम में वह बैठ सकता है या नहीं ? आदि पूछताछ मैंने शुरू कर दी। श्री शंकरराव गुलवाडीजी ने देखा की अब उंचल्ली का कार्यक्रम तय किये बिना शांति या स्वास्थ्य मिलने वाला नहीं है। वे खुद भी मुझसे कम उत्साही नहीं थे। उन्होंने बताया कि जब बिजली पैदा करने की दृष्टि से कारवार जिले के प्रपातों की जांच-सर्वे की गई थी, तब इंजीनियर लोगों ने उंचल्ली के प्रपात को प्रथम स्थान पर रखा था; और गिर सप्पा यानी जोग के प्रपात को दूसरे स्थान पर मागोड़ा को तीसरा और सूपा के नजदीक के स्थान को चौथा स्थान दिया था। समुद्र के साथ कारवार जिले की दोस्ती जोड़नेवाली मुख्य चार नदियां हैं— काली नदी, गंगावली, अधनाशिनी और शरावती । इनमें से शरावती या बाल नदी होन्नावर के पास समुद्र से मिलती है। दस साल पहले जब हमने जोग का प्रपात दूसरी बार देखा था, तब इस शरावती नदी पर नाव में बैठ कर होन्नावर से हम ऊपर की ओर गये थे। शरावती का किनारा तो मानो वनधी का साम्राज्य है।
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अबकी बार जब हम हुबली से अकोला और कारवार गये तब आरवेल घाटी में से 'नाग मोड़ी' रास्ता निकालनेवाली गंगावली को देखा था और अंकोला से गोकणं जाते समय उसके पृष्ठ भाग पर नौका कीड़ा भी की थी। काली नदी के दर्शन तो मैंने बचपन में ही कारवार में किये थे। पचास साल पहले के ये संस्मरण दस साल पहले ताजे भी किये थे और अबकी बार भी कारवार पहुंचते ही काली नदी के दो बार दर्शन किये। किन्तु इतने से सन्तोष न होने के कारण कारवार से हलगा तक की दस मील तक की यात्रा - आना-जाना नाव में की।
चौथी है अघनाशिनी। उसका नाम ही कितना पावन । गोकर्ण के दक्षिण की ओर तदड़ी बंदर के पास वह टेढ़ी-मेढ़ी होकर खूब फैलती है । किन्तु समुद्र तक पहुंचने के लिये उसको जो रास्ता मिलता है वह २१६ / समन्वय के साधक