Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
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गया। संघर्ष में हर दफे परास्त होना किसी भी जाति के लिए हितकर नहीं है। जो लोग धर्म का अध्ययन करते हैं, धर्म-नीति के सिद्धांत पर विश्वास करते हैं और ईश्वर पर और उसके नबी ईसा मसीह पर श्रद्धा रखते हैं उनकी आस्तिकता की, धर्मश्रद्धा की ऐसी स्थिति में पूरी कसौटी होती है। उनका मनोमंथन तीव्र वेग से चलता है, "क्या, ईसा मसीह ने कहा वह सब सही है ? या केवल पोला अभिवचन है। ईसा ने कहा कि 'प्रेम करो, शत्रु पर भी प्रेम करो । बुराई का मुकाबला बुराई से मत करो। हिंसा से परहेज रखो। जो नम्र हैं, दीन हैं, निरुपद्रवी हैं उन्हीं की अंत में विजय है।' ऐसे उदात्त विचारों पर विश्वास तो तुरंत बैठता है, लेकिन अनुभव उलटा होने से श्रद्धा डिगने लगती है । और मन कहने लगता है कि यह सारा उपदेश व्यक्ति-व्यक्ति के संबंध में ठीक है। लेकिन एक जमात का दूसरी जमात के साथ संघर्ष होता है, जाति-जाति के बीच वैमनस्य बढ़ता है, दो राष्ट्रों के बीच दुश्मनी पैदा होती है, तब ये सारे नीति-नियम काम नहीं आते। वहां तो जंगल का कानून ही सही मालूम होता है।" प्रथम ईसा मसीह जैसे नबियों के वचनों पर विश्वास रखना, अध्यात्मशास्त्र का श्रद्धा से स्वीकार करना, और बाद में इस नतीजे पर आना कि संत-वचन सार्वभौम नहीं हैं, मनुष्य की निष्ठा को ठेस पहुंचाता है, आस्तिकता अपमानित होती है, श्रद्धामय जीवन टूट जाता है और मनुष्य अस्वस्थ होता है।
अमेरिका के नीग्रो लोगों के एक धर्मोपदेशक नेता की हालत ऐसी ही हुई। सच्चा आस्तिक होने के कारण उसकी अस्वस्थता बढ़ गई। ऐसी हालत में उसने गांधीजी का नाम सुना। उनकी सत्याग्रह-मीमांसा उसने पढ़ी। गांधीजी ने हिन्दुस्तान में सत्य के और सत्याग्रह के जो प्रयोग चलाये उसकी जानकारी उसने हासिल की और उसने देखा कि ईसा मसीह की नसीहत सचमुच सार्वभौम है। गांधीजी ही सच्चे ईसाई हैं, हालांकि उन्होंने उस धर्म की दीक्षा नहीं ली है। ईसा मसीह के उपदेश का यह नया अर्थ, यह नया स्वरूप गांधीजी से प्राप्त करते ही इस नवयुवक में नया चैतन्य प्रकट हुआ और उसने अपनी जाति को इस नये रास्ते ले जाने का निश्चय किया और दो-तीन साल की कठिन तपश्चर्या के अंत में उसे सफलता मिली और सारी अमेरिका का और दुनिया का ध्यान उसकी ओर आकर्षित हुआ।
नीग्रो-जाति के इस अमेरिकन नेता का नाम है रेवरंड डॉ० मार्टिन लथर किंग। जब मैं नीग्रो सवाल समझने के लिए अमेरिका में घूम रहा था तब मैंने मांटगोमरी जाकर रेवरंड किंग की मुलाकात ली। दो दिन उनका मेहमान भी ठहरा और मैंने उन्हें और उनकी धर्मपत्नी को भारत आने का अनुरोध भी किया। गांधीजी के साथ जिन्होंने काम किया है और सत्याग्रह के आन्दोलन में जिन्होंने नेतृत्व किया, ऐसे लोगों से खास मिलने की इनकी इच्छा है । रेवरंड किंग से मैंने कहा कि आप भारत में घूमकर हमारे गुण-दोष दोनों देखिए । सत्याग्रह आन्दोलन के पहले समाज में कई बुराइयां थीं। गांधीजी के प्रयत्न के कारण और स्वराज्य-प्राप्ति के हेतु सारा राष्ट्र बहुत कुछ ऊंचा उठा। हिंसा का आश्रय लिये बिना हम आजाद हो गए। आजादी हासिल होते ही एक तरह की कृतार्थता, अलंबुद्धि लोगों में आ गई है। नई आजादी के नये अधिकारों की लालसा भी लोगों में पैदा हुई है। पुरानी कई कमजोरियां अब खुली हो गईं। यह सब भी देखना चाहिए और ऐसी परिस्थिति में भी शांतता प्रेमी, अहिंसा-मार्गी, भारत-हृदय कैसा काम कर रहा है, यही आपको देखना है।
(मार्टिन लूथर किंग दम्पती भारत आए थे और यहां से अत्यन्त प्रभावित होकर लौटे थे। बाद में किसी विवेकहीन व्यक्ति ने उन्हें गोली मार दी। सम्पा०)
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