Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
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कुछ भी करूंगा, उसमें हिन्दू-मुसलमान आदि का ऐक्य और दीन, दबे हुए और पतित जनों की सेवा-यही मुख्य उद्देश्य रहेगा। इसके लिए आवश्यक दृष्टि, निष्ठा और पवित्रता मुझे मिले, ऐसे आशीर्वाद मुझे दीजिएगा।
संस्था के द्वारा काम करने का विशेष उत्साह नहीं रहा है। फिर भी हाथ में लिया हुआ संगठनकार्य चलाना ही पड़ेगा। किन्तु अब अकेले या साथियों के सहयोग से जो काम सहज हो सके उसी की ओर अधिक झुकाव रहेगा।
मुझे परम आनंद तो इस बात का है कि आखिरी बत्तीस वर्षों से मेरे मन में अंग्रेजों के प्रति जो द्वेष दृढमूल हो रहा था, वह कम होते-होते समूल नष्ट हो गया है। यह सारा आपकी चरण-सेवा का ही प्रताप है। साथ ही आज स्व० महादेवभाई का उत्कट स्मरण कैसे न हो ?
आपके पुण्य चरणों में
सेवक काका के सादर प्रणाम
श्रीमन्नारायण को
'सन्निधि'-राजघाट
नई दिल्ली-२
२३-७-६६ प्रिय श्रीमन्जी,
आप काठमाण्डू पहुंच गये । आशा करता हूं कि आपके पिताजी का स्वास्थ्य अब चिन्ताजनक नहीं होगा। आपके इन्दशेखरजी ने हमारी नेपालयात्रा के प्रेस-कटिंग उसी समय भेजे थे। और अब एक अच्छीसी फोटो अलबम-चित्र-मंजूषा-भी भेजी है । मंजूषा देखकर नेपाल के दिन ताजे हो गये।
नेपाल के बारे में बहुत कुछ लिखना है। नेपाल में हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म का जो समन्वय है, वह भारत के लिए हमारी संस्कृत के लिए एक बड़ी सिद्धि है । लेकिन वहां के लोगों के लिए वह सारी चीज निष्प्राण-सी हुई है।
हम मुस्लिम संस्कृति की मुठभेड़ में समन्वय तक पूरे पहुंच न सके। ईसाई संस्कृति की मुठभेड़ से भारतीय संस्कृति असाधारण प्रभावित हुई है, यहां तक कि हिन्दू-समाज और संस्कृति की शक्ल ही बदल गई है, फिर भी दोनों के बीच समन्वय स्थापित नहीं हुआ है।
तीसरी बड़ी धर्म-संस्कृत बौद्धधर्म की है। वह तो भारत में पैदा हुई और एशिया में फैली, तो भी इतने बड़े प्रभावशाली एशियाई धर्म-साम्राज्य को अपनाने का हिन्दू संस्कृति को नहीं सूझा । फलतः तीन संस्कृतियों की मुठभेड़ अब हमें झेलनी है।
इस दृष्टि से नेपाल की ओर मैंने ध्यान से देखा । आप वहां नहीं थे, इसलिए नेपाल के नेताओं से हादिक विचार-विनिमय नहीं हो सका। नेपाल की आज की राजनीति 'ट्रायल एण्ड एरर' (प्रयोग करो
पत्रावली | २८३