Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti

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Page 316
________________ तू सीकर से वापस आयेगी तब दिनेश नन्दनी का 'भौतिक-माल' ले आना । ... मैं तो अभी कोई सक्रेट न रखकर ऐसे ही स्वयं रहूंगा। प्रयोग काफी हुए। अब आगे नसीब में क्या है, किसको मालूम ! राधाकृष्णजी को सप्रेम वन्देमातरम् और अनु को काका का सप्रेम शुभाशीर्वाद । उमा अग्रवाल को चि० ॐ को काका के सप्रेम शुभाशिष, तुम्हारा ता० २७-१० का पत्र कल मिला। पढ़ कर खुश हुआ। चि० रामकृष्ण का भी एक खत अल्मोड़े से आया । उसमें मैंने नुक्ताचीनी बहुत की है। तुम्हारा पत्र सुव्यवस्थित है । तुम्हारा यह पत्र पहला ही है तो सही, लेकिन तुम तो जब कोयल और बिल्ली थी, तबसे मेरी गोद में खेली हो । इसलिए प्रथम पत्र का तुम्हें क्षोभ न रहा, यही स्वाभाविक था । तुम्हारे 'विद्योदय' से अगर तुम डिसिप्लिन सीखकर आ गई तो पूज्य बापूजी को अपार आनन्द होगा । मुझको आनन्द के साथ अदेखाई भी होगी, क्योंकि मैं तो जिन्दगी भर अव्यवस्थित रहा, इसलिए मेरे जीवन की दो-तिहाई उपयुक्तता नष्ट हो गयी । कहते हैं कि पानी में गिरने से ही तैरना आता है, इसी तरह से मद्रास में तुम्हें इंगलिश आ जागा | मुझे विश्वास है कि इंगलिश के तामिल उच्चारण तुम नहीं सीखोगी, नहीं तो हम तुम्हें वर्धा आने नहीं देंगे। फिर मद्रास में रहना होगा । तुम इंगलिश सीख लो और वहां के शिक्षकों में और लड़कियों में राष्ट्रभाषा का कुछ प्रचार भी करो । वर्धा १-११-३५ सुना था । मद्रास की तरफ कर्नाटक संगीत और वीणा वादन अप्रतिम होता है । विशालाक्षी का संगीत हमने गणित तो कुछ-कुछ करती होगी। गणित से सेवा शक्ति बढ़ती है। प्रार्थना किसी भी धर्म की हो, हम उसमें से धार्मिकता ले सकते हैं । बाईबल का अभ्यास तो उपयोगी है ही, खासकर के जीजस का गिरि प्रवचन ( सर्मन आन दी माउण्ट ) और अपने शिष्यों को प्रचार के समय भेजते समय दिया हुआ आदेश । और भी अच्छी-अच्छी चीजें हैं, लेकिन इस वक्त इसका जिक्र नहीं करूंगा। मुझे समय-समय पर लिखोगी ही । मेरी तबीयत अच्छी है । ५ तारीख के बाद उमरावती, धुलिया, बम्बई जाऊंगा । १. जमनालाल बजाज की पुढी (ओम ) । ३०२ / समन्वय के साधक

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