Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti

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Page 319
________________ खैर, जो कुछ हो सकता था, आपने किया है। मीरा के संबंध में जो विचार-गोष्ठी होने वाली है उसमें उपस्थित रहकर मैं क्या करूं? एक तो मैं कान से बहुत कम सुनता हैं। दूसरे, चोटी के विद्वानों के बीच बैठते भी संकोच होगा। विचार-गोष्ठी में जो निबंध पढ़े जाएंगे और चर्चा होगी, वह सब छप तो जाएगी। उससे मैं लाभ उठाऊंगा। हिन्दी साहित्य समिति के उद्घाटन के लिए मैं आ सकता हूं। मेरा खयाल है कि वे लोग विचारगोष्ठी और समिति का उद्घाटन करीब-करीब एक ही समय पर करेंगे। मीरा-विचार-गोष्ठी के फलस्वरूप अगर आवश्यक संदर्भ-साहित्य तैयार होगा तो मीरा-भक्तों को और दुनिया को लाभ होगा। १. मीरा-साहित्य में आनेवाले सब शब्दों का एक प्रामाणिक और परिपुष्ट कोश चाहिए। २. मीरा के नाम से प्रचलित सब भजनों का समस्त संग्रह प्रकाशित करके उनमें मीरा के सही भजन कौन से और कौन से त्याज्य हैं, इसका भी यथाशक्ति निर्णय करना चाहिए। ३. मीरा ने समय-समय पर अलग-अलग साधनाएं आजमाई हैं, उन सब साधनाओं का विवरण अब एकत्र करने के दिन आये हैं। ४. मीरा के भजनों से भाषा का स्वरूप देखकर तीन विभाग करने चाहिए : . (१) राजस्थानी विभाग, जिसमें वृन्दावन जाने के पहले के सब भजन आ जाएं। (२) वृन्दावन विभाग, जिसमें राजस्थानी शब्द कम होते हैं और हिन्दी शब्द अधिक आते हैं। और (३) द्वारका का विभाग, जिसमें गुजराती शब्दों की भरमार है । ऐसे तीन विभाग, भाषा के स्वरूप के अनुसार, करने से मीरा की साधनाओं का क्रम भी कुछ न कुछ स्पष्ट होगा। ऐसी-ऐसी कई चीजें ध्यान में आती हैं, जो मीरा-साहित्य उपासकों के सामने रखने को जी चाहता है। मीरा किस परम्परा की थी और मीरा का अपना कोई सम्प्रदाय तैयार हुआ था या नहीं, इसकी भी खोज होनी चाहिए। और अन्त में मीरा का एक कायमी केन्द्र ऐसे स्थान पर स्थापित होना चाहिए, जहां से बहुत-कुछ काम हो सके। चि० रूचिरा और वनमाला दोनों की लीलाएं बढ़ गयी होंगी। चि० लीला को चाहिए कि बच्चों की लीला के वर्णन लिखे । आप उसमें मदद कर सकते हैं । काका के सप्रेम वन्देमातरम् वनु को सन्निधि, राजघाट नई दिल्ली-१ ता० २६-८-७४ चिरंजीव प्यारी वनु, तुम्हारा ता० २२-८ का पत्र आज ता० २६ को मिला । तुम्हारा पन आने से बड़ी खुशी हुई। १. पदमचन्द्र सिंघी की पुत्री। पत्रावली/३०५

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