Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti

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Page 335
________________ प्रेरक विचार • गीता में कहा गया है कि यह जीवन-चक्र प्रवर्तित है, इसलिए जीवसृष्टि भी कायम है। इसी जीवन-चक्र को गीता ने 'यज्ञ' कहा है। यह यज्ञ-चक्र यदि न होता तो सृष्टि का बोझ भगवान के लिए भी असह्य हो जाता।... मनुष्य के सुख-दुःख उसके अधीन नहीं हैं; किन्तु सुख-दुःख का सदुपयोग कर लेना उसके हाथों में है । सुख और दुःख से मनुष्य अगर अपना अधःपात न होने दे, अपनी साधना के द्वारा दोनों का सदुपयोग करे और उन्नति साध ले तो एक ढंग से (अर्थात् नम्र अर्थ में) वह भी सुख-दुःख का ईश्वर बन सकता है।... सत्य के पालन से हमारा तेज बढ़ता है, चारित्र्य उन्नत होता है, धैर्य की सिद्धि होती है।...सत्य से जो आन्तरिक सन्तोष मिलता है, उसकी बराबरी कर सकने वाली कोई दूसरी चीज दुनिया में है ही नहीं।... • मुर्गी के बच्चों का आकार बनने से पहले जिस प्रकार उन्हें अण्डे के कवच का रक्षण चाहिए, उसी प्रकार मन पक्का हो जाय तबतक के लिए बच्चों को ईश्वर ने अज्ञान का यह कवच दिया है। यह उसकी कृपा ही है।... मामूली मौत से न बुद्ध भगवान् बच सके, न महावीर। सबको शरीर छोड़ना ही पड़ा, लेकिन उन्होंने आत्मनाश रूपी मृत्यु पर विजय पाई।... -काका कालेलकर O0

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