Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti

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Page 309
________________ आयेंगे तो स्वराज्य कैसे नहीं मिलेगा ?" मेरे आनंद की कल्पना आप ही कर लीजिये । शंकर, बाल' दोनों बापूजी के साथ एक ही दल में हैं। बंदूक की गोली खानी पड़ेगी तो भी एक-दूसरे के साथ होंगे इससे ज्यादा क्या चाहिए ? नडियाद में दोनों से भी मिला। आश्रम में इस समय स्त्री राज्य चालू है। आश्रम के लगभग सब काम और सब विभागव्यवस्था, हिसाब, डाक, दुकान, चर्मालय, दुग्धालय-सारे विभाग महिलाओं की मदद से चल रहे हैं। महिलाओं ने अपने-अपने पति-पुत्रों को लड़ाई में जाने की खुशी से रजामंदी और उनके काम स्वयं संभाल लिये, यह कोई मामूली बात नहीं। मीराबाई और अंगद (रेजीनल्ड रिनाल्ड्स) दोनों को आश्रम में महत्त्व का स्थान है । अंगद ने विनोद से कहा, "बापू, यू आर आउट टू डेस्ट्रीय ब्रिटिश रूल इन इंडिया, बट यू आर एसटेब्लिशिंग ब्रिटिश रूल इन दी आश्रम"। (बापू, आप भारत में से ब्रिटिश राज्य मिटाने निकले हैं, किंतु आश्रम में तो आप ब्रिटिश राज्य स्थापन कर रहे हैं !) अंगद महादेवभाई से कहता है, "महादेव, आई एम प्रीपेयर्ड टू ड एनी वर्क फार यंग इंडिया अंडर यू" (महादेव, मैं 'यंग इंडिया' के लिए कुछ भी काम तुम्हारे कहे अनुसार करने को तैयार हूं।) अहिंसा धर्म की यह विजय है !... कर्नाटक में स्त्री-जागति का काम कौन करेगा? कर्नाटक की महिलाओं में इतना निश्चय-बल है कि वे सारे भारत को आश्चर्यचकित कर सकती हैं। उनको किसी को जागृत करना चाहिए। सारस्वत स्त्रियों की देशभक्ति अब अच्छी तरह उदयोन्मुख है। काका के सप्रेम वंदेमातरम् विजया को चि. विजया, सचमुच किसी अन्य ललितकला से संगीत या नृत्य दोनों हृदय आत्मा को सबसे अधिक पोषक है। ये दोनों कलाएं कम-से-कम खर्च की और अधिक-से-अधिक जीवन समृद्धि की पोषक हैं। जो लोग पेशेवर गवैये और नर्तक होते हैं उनके जीवन में इन दो कलाओं की संस्कारिता पूरी तरह से क्यों नहीं उतरती उसका आश्चर्य है, पर जिन्होंने संगीत और नृत्य को सिर्फ आमदनी का साधन नहीं बनाया, बल्कि जीवन की कमाई के रूप में ढाला है, उसके स्वभाव, बातचीत, हलन-चलन और सामान्य विवेक में भी एक तरह की सुन्दर प्रमाणबद्धता, सुघड़ता और सुरुचि आ जाती है। वही बात मैंने टेनिस आदि खेल खेलते लोगों में देखी है। आदिवासी तो संगीत और नत्य के खजाने पर ही जीते हैं। वे लोग जब समूह-नृत्य करते हैं तब अपनापन भूलकर नृत्य और संगीत के ताल में तल्लीन हो जाते हैं । यह बात मैंने आसाम के आदिवासियों में भी देखी है और पश्चिम भारत के ग्राम्यजन में भी देखी है। अपन से उन लोगों में अधिक जोम होता है, जबकि अपने मध्यम-वर्ग में लालित्य की अधिकता है। एक जमाना आयेगा, जब ऐसे भेद नहीं रहेंगे । लालित्य को जोम छोड़ना ही चाहिए, ऐसा नियम नहीं है। १. काकासाहेब के छोटे पुत्र । २. नारायणदास गांधी की पुत्रवधूः पुरुषोत्तमाभाई की पत्नी; संगीत में निष्णात । पत्रावली / २६५

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