Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti

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Page 291
________________ गांधीजी के सत्याग्रही राजनीति के फलस्वरूप भारत स्वतन्त्र हुआ। लेकिन साथ-साथ गांधीजी का बलिदान भी हुआ। तब से देश की परिस्थिति बदल गयी। जयप्रकाश और प्रभावती दोनों ने हमारे विनोबाजी का चलाया हुआ गांधीमार्ग ही पसंद किया। और 'आदर्श पतिभक्ति का उत्तम नमूना' देश के सामने रखने प्रभावती के देहान्त के बाद जयप्रकाशजी दिखा रहे हैं कि दाम्पत्यजीवन में पतिभक्ति एकपक्षी नहीं रह सकती। प्रभावती के पूजा-अर्चा के धार्मिक व्रतों को भी अपनाकर जयप्रकाशजी अपने जीवन के द्वारा प्रभावती को जीवित रख रहे हैं। प्रभावतीजी ने जिन-जिन संस्थाओं में काम किया, जो-जो प्रवृत्तियां चलायीं और अन्य अनेक संस्थाओं को और व्यक्तियों को प्रेरणा दी उसका संपूर्ण वर्णन उनकी जीवनी के साथ हमें मिलना ही चाहिए। प्रभावती की स्वराज्य सेवा में यह भाग कम नहीं है। जब प्रभावती और जयप्रकाशजी के दाम्पत्यजीवन का मैं चिंतन करता हूं, तब मुझे हमारे वेदान्ती युग का प्रारम्भ करनेवाले रामकृष्ण परमहंस और उनकी धर्मपत्नी शारदामाता के दाम्पत्य-आदर्श का ही स्मरण होता है । ये दोनों नमूने भिन्न हैं, इसमें शक नहीं। किन्तु दोनों एक-से आदरणीय और पूजनीय हैं। हमारे जमाने का प्रारम्भ इस तरह एक आदर्श बंगाली दाम्पत्य से हुआ और स्वराज्य-प्राप्ति के सफल युग का अंत एक दूसरे आदर्श बिहारी दाम्पत्य जीवन में देखने का मौका हमें मिला। भगवान को इसमें से कौनसी नवनिर्मिति दिखानी है, वही जाने। स्वराज्य-प्राप्ति को अब पचीस वर्ष हुए। हमारी राष्ट्रीय और सांस्कृतिक कमजोरियां देश में सर्वत्र फैली हुई दीखती हैं। लेकिन ऐसे उत्तमोत्तम उदाहरण भी देखते निराशा हमें छू नहीं सकती। स्वतन्त्र भारत के लिए कोई नया विवेकानन्द तैयार हो ही जाएगा। हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए जूझन्नेवाली बीबी अमतुस्सलाम जब 'बीबीजी' अमतुस्सलाम ने गांधी जी के संसर्ग में आकर उनके आश्रम में दाखिल होने की इच्छा व्यक्त की, तब उनकी उम्र बीस के आसपास होगी। और उनकी तबीयत इतनी कमजोर थी कि आश्रमवाले उनको लेने को तैयार नहीं थे। यदि यह मालूम होता कि उनका शरीर तरह-तरह की बीमारियों का घर है तो उन्होंने अमतुस्सलाम बहन को मेहमान के तौर पर भी कुछ दिन रखना स्वीकार नहीं किया होता। आज उनकी उम्र ६७ साल की होगी और तबीयत भी ऐसी ही। सोलह साल उन्होंने गांधी जी का सहवास पाया और बाद में लगभग पचीस बरस हुए हैं गांधीजी का सेवाकार्य करते हुए गांधीजी को जिन्दा रख सकी हैं। प्रसन्नता से कहना होगा कि गांधीजी के आश्रम के उत्तमोत्तम सत्याग्रही सेवकों में से वे एक हैं। गांधीजी के बताये तेजस्वी आदर्शों को अपनाकर त्यागपूर्ण सेवामय जीवन बिताने में और गांधीजी का रचनात्मक कार्य चलाने के लिए अच्छी-अच्छी संस्थाओं का विकास करने में उनसे बढ़कर आदमी मिलना दुर्लभ है। उत्तर भारत के एक संस्कारी अमीर खानदान के छ: भाइयों की इकलौती वह लाड़ली बहन हैं । ठेठ छुटपन से उनमें हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य के लिए जीवन समर्पित करने की हौस और मौका आने पर उसे सिद्ध करने के लिए अपने प्राण अर्पण करने की उनकी तैयारी रही है। ठेठ छुटपन से कुरानशरीफ का उर्दू तरजुमा लिखकर उसका कुछ हिस्सा जबानी करने में जितना उत्साह था उतना ही उत्साह हिन्दू कुटम्बों से मिलकर रामायण, महाभारत की वार्ता सुनने का था। आज विचार : चुनी हुई रचनाएं | २७७

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