Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
View full book text
________________
पर हुआ । वह भी एकेश्वरी बना। इन यहूदियों में एक ऐसा धर्मपुरुष जागा जिसके नाम से ईसाई धर्म प्रवृत्त हआ है। मेरी दूसरी ओर ये रोमन-कैथोलिक धर्मोपदेशक बैठे हैं। उनका.ईसाई धर्म यहदी धर्म से ही निकला है। यहदियों की धर्मपुस्तक तौरात को वे मानते हैं और उसमें ईसामसीह के उपदेश को बढ़ाकर (जिसे इंजिल कहा जाता है) ईसाई धर्म बनता है।
आज हमारी सभा का प्रारम्भ आदरणीया कुलसुम सयानी ने किया। उनका इस्लाम धर्म इब्राहिम के के ही धर्म का विशद्ध रूप है।
इस्लाम का धर्मग्रंथ कुरानशरीफ़ है, जिसमें भगवान साफ तौर पर कहते हैं कि ऐसा एक भी देश या जमाना नहीं है जिसमें हमने लोगों को आगाह करने के लिए अपना कोई नबी या पैगम्बर नहीं भेजा हो। इस्लाम ऐसे सब नबियों को और उनके उपदेशों को सही मानता है। लेकिन कहता है कि बाद के लोगों ने समझ की कमी के कारण उनमें बिगाड़ किया। इसलिए अब कुरान भेजने की जरूरत पैदा हुई। जो हो, इस पर से इतना तो स्पष्ट होता ही है कि सब धर्म उनके मूलरूप में सही हैं और उनमें पारिवारिक सम्बन्ध है।
इधर सार्वभौम सनातनधर्म की वैदिक शाखा का भी बड़ा विस्तार हुआ। वेदकाल के यज्ञधर्म के बाद उपनिषद के ऋषियों ने ज्ञानचर्चा बढ़ाकर मोक्ष की साधना का रास्ता बताया। श्रीकृष्ण की भगवद्गीता ने उपनिषदों के आधार पर जीवन किस तरह जीना चाहिए उसका रास्ता बताया। ज्ञान, कर्म, उपासना, भक्ति आदि अनेक जीवनयोगों की साधना बढ़ी। चार वर्णों और चार आश्रमों की व्यवस्था ने समाज को संगठित किया। ऐसे विशाल धर्म को सामान्य जनता तक पहुंचाने के लिए और लोकप्रिय बनाने के लिए इतिहास और पुराण लिखे गये।
भारत के आदिवासियों के अन्दर जो धर्मभावना थी उसका भी स्वीकार और परिवर्तन इस आर्यधर्म में किया। आगे जाकर ऐसे श्रुति-स्मृति-पुराणों के धर्म में शुद्धि करने की जरूरत महसूस हुई। इसलिए वैदिक धर्म में से जैन और बौद्ध धर्म पैदा हुए।
असली वैदिक धर्म में उपासना-भेद से शैव, वैष्णव, शाक्त आदि शाखाएं फैल गईं। फिर इनमें शुद्धि करने के लिए बंगाल में ब्रह्म-समाज और पश्चिम भारत में प्रार्थना-समाज की स्थापना हुई। इस ब्रह्म या प्रार्थना समाज का वर्णन करते मैंने कहा था कि संगीत को राग और ताल के व्याकरण में शुद्ध रूप में रखने के लिए जिस तरह हम तानपुरा या तम्बूरा काम में लाते हैं उसी तरह सब धर्मों को शुद्ध रूप में संभालने के लिए ब्राह्म या प्रार्थना-समाज धर्मों का तंबूरा है। इस प्रार्थना-समाज के भी एक प्रतिनिधि श्री चंदावरकरजी यहां मौजूद हैं। उनसे मैं कहना चाहता हूं कि संत-साहित्य में पला हुआ मैं जब पश्चिम का बुद्धिवादी (रेशनालिस्ट) साहित्य पढ़ने पर संशयवादी-नास्तिक बना तब मुझे फिर आस्तिक बनाने का काम प्रार्थना-समाज ने किया था। इसलिए मैं उनके प्रति हमेशा कृतज्ञ रहूंगा। प्रार्थना-समाज में से वेदांत की ओर मुझे खींचने का काम स्वामी विवेकानंद, उनके गुरु रामकृष्ण और उनकी शिष्या भगिनी निवेदिता ने किया। उसी वेदांत को सुवासित करने का काम रवीन्द्रनाथ ने किया। और वेदांत की शक्ति का परिचय कराया योगी अरविंद घोष ने।
इस तरह से मेरे जीवन में समन्वय की समृद्धि स्थापित हुई और राजनैतिक क्रांति, सामाजिक नवजीवन और सांस्कृतिक जीवन-योग की त्रिवेणी को लेकर मैं गांधीजी के पास पहुंचा।
जबतक भारत पर मुसलमानों का अथवा ईसाइयों का राज्य था तब यहां ईसाई धर्म का और इस्लाम धर्म का जोर था। हिंदू लोग दबे हुए थे, इसलिए उनके धर्म की भी प्रतिष्ठा नहीं थी। तो भी पश्चिम के लोगों ने हमारा तत्त्वज्ञान और हमारी संस्कृति का अध्ययन शुरू किया। तब से उनके मन में हमारी संस्कृति के बारे
विचार : चुनी हुई रचनाएं | २६१