Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti

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Page 276
________________ थोड़ा आदर उत्पन्न हुआ है। स्वामी विवेकानंद, रवीन्द्रनाथ ठाकुर अरविंद घोष और महात्मा गांधी के प्रभाव से भारत की इज्जत बढ़ी और अब दुनिया के विचारवान लोग सब धर्मो के प्रति थोड़ा कुछ आदरभाव रखने लगे हैं। जब भारत बंटवारे के साथ स्वतंत्र हुआ तब मुसलमानों ने पाकिस्तान का राज्यधर्म इस्लाम है ऐसा जाहिर किया, हालांकि पाकिस्तान में हिन्दू लोगों की अच्छी संख्या है। भारत में हिंदू लोगों का प्रचंड बहुमत है । हम हिंदूधर्म को भारत का राज्यधर्म बना सकते थे । लेकिन वैसा हमने नहीं किया। हमने सोचा कि भारत का मिशन है कि धर्म-धर्म के बीच का संघर्ष टालकर हम धर्मों के बीच दोस्ताना संबंध बांध दें। सब धर्म मिलकर एक धर्म-कुटुंब बनें और सारी दुनिया में से धर्म के नाम के झगड़े हम टाल दें। धर्म - समन्वय की यह मांग केवल राजनैतिक नहीं है । यह मांग जागतिक है और सांस्कृतिक भी है । हम प्रथम बौद्धों के साथ और पारसियों के साथ समन्वय साधने की कोशिश करेंगे साथ-साथ ईसा इयों से और यहूदियों से भी समन्वय करेंगे इतना समन्वय सिद्ध होते ही मुसलमान भी राजनैतिक दृष्टि बाजू पर रखकर भारतीय समन्वय के लिए अनुकूल होंगे। और अगर भारत में विश्व समन्वय सिद्ध हुआ तो उसका प्रभाव बाहर की दुनिया पर भी पड़ेगा । पश्चिम के वैज्ञानिक लोग और सारी दुनिया के साम्यवादी लोग कहते हैं कि धर्म का नाम ही छोड़ दीजिये । विश्व मानवता के आधार पर सर्व-धर्म-विरोध का आंदोलन चलाकर दुनिया की एकता स्थापित हो सकती है। हमारा कहना है कि सब धर्मों के अंदर जो गहरी आध्यात्मिक बुनियाद है वही है मानवता का आधार । उसको खोने को हम तैयार नहीं हैं। और सब धर्मों के अंदर जो एकांगी, भ्रमात्मक और बुरी बातें हैं उनका प्रभाव हरएक धर्म के सामान्य लोगों पर इतना बलवान है कि विज्ञान और साम्यवाद के पास इतनी शक्ति नहीं है कि कोट्यावधि लोगों के हृदय में से धर्म-निष्ठा और धर्माभिमान वे दूर कर सकेंगे। ऐसी हालत में सब धर्मों के प्रति एक-सा तिरस्कार पैदा करना और आध्यात्मिकता छोड़कर मानवता का संगठन करना आज की दुनिया में शक्य नहीं है । इसलिए एक-एक धर्म और संस्कृति के सुधार का काम उसके अनुयायी पर हम छोड़ दें और हम सब धर्मों में जो अच्छाइयां हैं उनपर भार देकर सब संस्कृतियों को नजदीक ला छोड़ें। और इस तरह समन्वय के द्वारा मानवता को और विश्व ऐक्य को स्थापित करें । यही है आज का युगधर्म इसे सिद्ध न किया तो परस्पर अविश्वास और तिरस्कार बढ़कर विश्व का नाश ही होगा । इसलिए सब वंशों के बीच, सब धर्मों के बीच, सब जातियों के अंदर और सब संस्कृतियों के लिए समन्वय ही एकमात्र तरणोपाय है। इसी के पीछे पड़ने का हमने ईश्वरी प्रेरणा से संकल्प किया है । २६२ / समन्वय के साधक

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