Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
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२. जीवन-दर्शन
ओशम् नमो नारायणाय पुरुषोत्तमाय
भगवान के नाम अनन्त हैं, लेकिन भक्तों ने अपने आनंद के लिए दस, एक सौ आठ या हजार नाम इकट्ठा करके उनके स्तोत्र बनाकर गाया या जाप करना शुरू किया। ____ मैंने अपने ध्यान और जप के लिए दो नाम विशेष रूप से पसंद किये हैं—नारायण और पुरुषोत्तम ।
'नारायण' शब्द का अर्थ मैंने एक ढंग से किया है, मनु भगवान ने दूसरे व्यापक ढंग से। दोनों अच्छे हैं और सच्चे हैं। दोनों को मिलाना चाहिए। "नराणाम् समूह :॥ नारम्"। भूतकाल, वर्तमान और भविष्य के समस्त नर-नारी के समूह को संस्कृत में 'नार' कहते हैं। नार यानी सम्पूर्ण मानव-जाति । यह नार, जिसका अयन यानी 'रहने का स्थान' बन गया है, वह है 'नारायण (गॉड ऑफ ह्य मेनिटी।)'
अब मनु भगवान की व्युत्पत्ति समझाता हूं:
पृथ्वी, आप, तेज, वायु, आकाश इन पंच महाभूतों की सृष्टि जिस मूल तत्त्व से बनी है, उसे संस्कृत में 'आप' अथवा 'अप्' कहते हैं। संस्कृत में 'आप' का मामूली अर्थ है पानी; लेकिन समस्त सृष्टि के मूल तत्त्व को भी 'आप' या 'अप्' कहते हैं। परमात्मा को 'नर' कहते हैं। 'नर' में से 'अप्' तत्त्व बना, इसलिए उसे 'नार' कहने लगे। मनु भगवान समझाते हैं, "आपो नारा इति प्रोक्ता आपो वै नर-सूनवः।" अप् शब्द यहां बहुवचन में आपा है। 'नर' में से उत्पन्न मूल तत्त्व--'नार' जिसका रहने का स्थान हुआ-वह है नारायण ।
ताः यद् अस्य अयनं जातम् इति नारायण स्मृतः। (गॉड इज ऑफ दी यूनिवर्स) । ये दोनों अर्थ एकत्र करके हम नारायण का ध्यान करें और जाप भी करें।
दूसरा शब्द है पुरुषोत्तम। इसका अर्थ स्पष्ट है। संस्कृत में 'पुर' यानी शरीर। "पुरिशेते इति पूरुषः।" इस शरीर में सुप्त रूप में जो रहता है, वह जीवात्मा पुरुष कहा जाता है। हम सब पुरुष हैं। पुरुष में जो सुप्त तत्त्व है, उसे जाग्रत करके सर्व गुण सम्पन्न करने से वही उत्तम पुरुष अथवा पुरुषोत्तम बनता है। पुरुष का भाव चढ़ाते-चढ़ाते जब हम ऊपर तक पहुंच जाते हैं तब वही पुरुषोत्तम बनता है (उत, उत्तर, उत्तम)।
'नारायण' शब्द में समस्त मानव-जाति का विचार जाग्रत होता है और 'पुरुषोत्तम' शब्द से मानवता के गुणोत्कर्ष का विचार केन्द्रित होता है, इसलिए ये दो नाम मैंने अपने ध्यान भजन के लिए पसंद किये हैं। 'नारायण' शब्द की एक व्याख्या महाभारत से मिली है :
___समः सर्वेषु भूतेषु, ईश्वरः सुखदुःखयोः।
महान् महात्मा सर्वात्मा नारायण इति श्रुतिः।। (शान्तिपर्व ३५५/२७) श्लोक का अर्थ स्पष्ट है। परमात्मा सब प्राणियों में भूतों में समान है, सबके सुख-दुःख का वह ईश्वर
२२८ | समन्वय के साधक