Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
View full book text
________________
छूट हुए स्वच्छंद पत्ते'
पतझड़, फतझार या खिजा आदि अलग-अलग नामों से पहचानी जानेवाली हेमन्त ऋतु किसका ध्यान आकर्षित नहीं करती ? जवानी जब बुढ़ापे को देखकर हंसती है तब बुढ़ापा उसे जवाब देता है, "पीपल पान खरंत हंसती कूंपलियां, मुज वीती तुज वीतशे धीरी बापुडियां " - झड़ते हुए पीपल के पत्तों को देखकर नई उगने वाली कोंपले हंसने लगीं, तब वे शुष्क पर्ण कहने लगे, "यारो धीरज रखो। जो हमारी गत हुई है, वही वक्त आने पर, तुम्हारी भी होने वाली है । "
पतझड़ ऋतु आने पर जिस प्रकार पत्ते झड़ने लगने लगते हैं, उसी प्रकार पेड़ सूखने लगता है । उस समय भी पत्ते झड़ने लगते हैं । इसलिए कभी-कभी मन में चिंता होने लगती है कि पेड़ का यह काल आया है या उसका केवल कायापलट हो रहा है ? पतझड़ कहें या सूखना ? कायापलट है या काल है ?
आज अगहन पूनम का दिन है। जेल के हमारे आंगन में नीम का एक ही पेड़ है और आजकल वह लगातार पत्ते गिराता रहता है। सूरज दक्षिणायन होने के कारण पेड़ की दक्षिण बाजू जल्दी साफ हो गई । पवन भी सांप्रत दक्षिण का ही है । चुनांचे वे सारे पत्ते मेरे सामने वाले आंगन में आ गिरते हैं ।
यों तो इन पत्तों को गिरते देखकर मन में विषाद का भाव पैदा होना चाहिए । लेकिन वैसा बिल्कुल नहीं होता, उल्टा इन पत्तों को देखते हुए मजा आता है । पत्ते झड़ने लगते हैं तो इतने झड़ते हैं कि मानो आसमान में टिड्डी दल फैल गया हो। मालूम होता है, इन पत्तों को नीचे उतरने की थोड़ी भी जल्दी नहीं होती । गिरते-गिरते कितने ही गोल-गोल चक्कर काटते रहते हैं। मुझे कोई प्रसन्न हास्य का चित्र उतारने को कहें, तो मैं इन गोल-गोल चक्कर काटते, हंसते, फुदकते और आराम से नीचे गिरते पत्तों का ही चित्र उतारूंगा ।
और फिर जमीन पर गिरने के बाद क्या आप मानते हैं, ये पत्ते चुपचाप पड़े रहेंगे ? बिलकुल नहीं । छोटे बच्चे जिस प्रकार दौड़ने का और एक-दूसरे को पकड़ने का खेल खेलते हैं, उसी प्रकार ये पत्ते भी यहां से वहां और वहां से यहां, तो कभी चक्कर काटते गोल-गोल दौड़ते हैं। चारों ओर जेल की दीवार होने के कारण ऊपर से उतरने वाला पवन आंगन में चक्कर काटने लगता है और इससे स्वच्छंद क्रीड़ाप्रिय परों को उसके साथ खेलने का अवसर मिलता है । कभी-कभी जब उत्तर तरफ के दरवाजे में से हवा का झोंका आता है त कई एक पत्ते हंसते-कूदते मेरी ओर दौड़ आते हैं-' इन बच्चों ने तो नाक में दम कर रखा है, ' कहकर जब बाप कुछ अपनी नाराजगी जाहिर करता है तब जिस तरह तुरन्त 'भागो भागे, पिताजी हमें पकड़ने आते हैं जान लेकर भागो, वरना खैरियत नहीं !' कहते हुए बच्चे मां के पास दौड़ आते हैं और उसके पास फरियाद पेश करते हैं कि 'देखो न मां, पिताजी हमें पकड़ने आते हैं, हमें थोड़ा भी खेलने नहीं देते !' उसे लिपट जाते हैं, वैसे ही ये पत्ते दरवाजे की ओर से मेरी ओर दौड़ आते हों, ऐसा मालूम होता है ।
यह दृश्य देखकर पेड़ पर के हरे पत्तों को क्या लगता होगा ? मौत के डर से जड़मूढ़ बने हुए मनुष्य के समान ये पत्ते सोचते नहीं होंगे ? पेड़ से छूटे हुए पत्ते जब हंसते-हंसते और गोल-गोल चक्कर काटते नीचे गिरते हैं, तब जिनकी झड़ने की बारी अब तक नहीं आई उनके लिए दुःखी होने का कारण ही क्या है ? जेल से छूटनेवाले कैदियों को देखकर अन्य कैदियों को अपने साथियों के चले जाने से जैसा लगता होगा, ठीक वैसा ही इन पत्तों को भी होता होगा ।
मुझे लगता है कि पत्तों को तो थोड़ी देर बाद पेड़ को फूटनेवाली फुनगियों के लिए झटपट जगह कर
१. 'भारत छोड़ो' आंदोलन के संदर्भ में बंदी - वास की डायरी के कुछ पृष्ठ
विचार: चुनी हुई रचनाएं / २२१