Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
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दूसरे दिन भी औपचारिक दोपहर का भोज और एशिया सोसायटी की सभा थी, जिसमें भारत के हरिजनों का स्थान और उनकी प्रगति के बारे में व्याख्यान हुआ ।
इस तरह आचार्यजी की अमरीका को दी हुई अद्भुत सेवाओं की पूर्णाहुति हुई। उनके दर्शन से बहुत लोग अत्यंत प्रभावित हुए, शायद उनके ज्ञानपूर्ण शब्दों से भी अधिक ।
सात वर्ष बाद १९६५ में मैं नयी दिल्ली में थी । मेरे भारतीय परिवार ने आग्रहपूर्वक काकासाहेब के इक्यासीवें जन्मदिन के उत्सव में मुझे अपने साथ बिठाया ।
पाश्चात्य दुनिया के दो ही उपस्थित लोगों में से मैं एक थी । काकासाहेब के क्रान्तिकारी साथियों के और अनुयायियों के बीच उपस्थित रहना मेरे लिए बड़े ही गौरव की बात थी ।
काकासाहेब, हेरी और मेरी कुशिंग नाइल्स आपके ६५ वें जन्मदिन पर गहरी कृतज्ञता के साथ आपका सादर, सप्रेम वंदन करते हैं। सेवा और प्रेरणा के आपके जीवन के लिए भगवान को धन्यवाद देते हैं, जिसके द्वारा दुनिया के अलग-अलग भागों में इतने लोगों के जीवन समृद्ध हुए हैं ! O
पहली भेंट की अटूटू कड़ी क्यूया दोई
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हमारे जीवन में कुछ ऐसा सुअवसर भी सकता है कि किसी से मिलते ही हमारे हृदय में एक विचित्र मैत्री या आदर भाव उत्पन्न होता हो । मुझे यह सौभाग्य मिला था सन् १९६७ के एक दिन । बात यों हुई कि जापान में पधारे काकासाहेब कालेलकरजी से भेंट-वार्ता करने का काम मुझे सौंपा गया था। इसी उद्देश्य से मैं सुबह उनके होटल में गया। काकाजी बिस्तर पर लेटे हुए थे और सरोजबहन बगल में खड़ी थीं। दोतीन सज्जन खिड़की के पास आराम से बैठे थे कमरे के अंदर जाते ही मुझे एक विचित्र आत्मीयता महसूस हुई। ऐसा लग रहा था कि मैं वास्तव में अपने काकाजी से मिलने आया हूं। यह था काकाजी के व्यक्तित्व का प्रभाव ।
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वह रक्षा-बंधन का दिन था । सरोजबहन ने मेरी कलाई पर राखी बांध दी। तब हमारा संबंध और भी गहरा हो गया। मैं निःसंकोच काकाजी के पास बैठ गया और तुरंत ही बातें आरंभ हो गईं।
यह हमारा पहला मिलन था, पर 'सर्वोदय संघ' के श्री नागा और श्री मंत्री के माध्यम से हम एकदूसरे को अच्छी तरह जान चुके थे । इसीलिए हमारी बातें एकदम अनौपचारिक रूप से और ठीक-ठीक चलने लगीं ।
Satara हाल में निक्को हो आए थे। निक्को के मंदिर में तीन बंदरों की मूर्तियां बहुत प्रसिद्ध हैं । जापानी भाषा में बंदर अर्थ का " सारू" देखना, सुनना, कहना अर्थ की क्रियाओं के साथ मिलकर नकारात्मक अर्थ देता है । इसलिए तीन बंदरों के नाम मिजारु, किकाजारु और इवाजारु के अर्थ होते हैं न देखनेवाला बंदर, न सुननेवाला बंदर और न कहनेवाला बंदर । इन लघु पर अर्थपूर्ण शब्दों को सुनकर और बंदरों की मूर्तियों को देखकर अधिकतर जापानी समझते है कि इन तीन बंदरों का विचार जापान का अपना है । दूसरी ओर यह प्रसिद्ध बात है कि बापूजी इन तीन बंदरों को अपना गुरु मानते थे । इन बातों को ध्यान में रखकर यह कहना कठिन हो जाता है कि इन बंदरों का मूल आधार जापान का है या भारत का । निष्कर्ष यह हुआ
व्यक्तित्व : संस्मरण / ११६