Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
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प्रभावी लोग, स्वदेशी हों या विदेशी, सामान्य जनता पर राज्य करते आए हैं और जनता की भाषा को दबा देते हैं।
"प्राचीन काल में आर्य लोग उत्तर प्रदेश में सर्वत्र फैले, फिर दक्षिण में आए और उन्होंने यहां संस्कृत भाषा चलाई । मैं संस्कृत का भक्त हूं । दक्षिण में संस्कृत का प्रचार अच्छा हुआ । उसमें आप केरल-वासियों ने सबसे अधिक उत्साह दिखाया है।
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" उसके बाद आए पठान और मुगल उनकी धर्म भाषा अरबी और संस्कृति की भाषा फारसी है, जिसको आज परशियन कहते हैं उन भाषाओं का राज्य चला। वे दोनों भाषा उत्तर की देशी भाषा के साथ मिलीं और उर्दू पैदा हुई। उसके बाद पश्चिम के लोग आए उसका इतिहास आप जानते हैं। उनकी भाषा अंग्रेजी । उनका राज्य हम पर चल रहा है। वह कुछ यहां की प्रजा की भाषा नहीं है ।
' किन्तु यह भाषा का प्रश्न आपको सविस्तार समझा दूं, इससे पहले मैं अपनी ही बात आपको कहना
चाहता हूं।
" आपके ऊपर कोई आपण करे तो आप संगठित होकर अपने बचाव की तैयारी करते हैं । मैं आपको समझाने आया हूं कि केवल आत्मरक्षा यह उत्तम लक्षण नहीं है।
" संकट देखकर, दीवार बांध कर, अन्दर रहकर आत्मरक्षा करने के बदले आक्रमणकारियों के विरुद्ध आप ही आक्रमण क्यों न करें !
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अब आप ही बताइए, पिछले दस हजार वर्षों में केरल का सबसे बड़ा आदमी कौन था ? बेशक वे आद्य शंकराचार्य थे। वे केरल के नाम्बुद्री ब्राह्मण केरल के बचाव के लिए उन्होंने यहां पर सांस्कृतिक किले नहीं बांधे। उन्होंने तो उत्तर के लोगों की भाषा सीख ली और उन पर आक्रमण किया। वह अकेला छोटा केरल का ब्राह्मण सारे देश में हर जगह जाता था और वाद-विवाद के लिए आह्वान देता था। उत्तर की भाषा सीखकर उत्तर के शास्त्रों में प्रवीण होकर उन्होंने दिग्विजय चलाया। सारा देश जीतकर उन्होंने चारों छोरों पर आध्यात्मिक मठों की स्थापना की। वे चार आध्यात्मिक छावनियां हैं, जो आज भी मजबूती से काम कर रहे हैं । पश्चिम में द्वारका के पास, पूर्व में जगन्नाथपुरी, उत्तर में हिमालय की गोद में जोशीमठ, और दक्षिण में शृंगेरी अथवा कन्याकुमारी चार यात्राधामों में उन्होंने अपने मठों की स्थापना की और तब से इन सब स्थानों पर शंकराचार्य के शिष्यों ने धर्मप्रचार किया है।
"मैं आपको कहने आया हूं कि अब हम ब्राह्मणों का, मुल्लाओं का अथवा अंग्रेज आई०सी० एस० या मिशनरियों का राज्य नहीं चाहते। हम भारतीय प्रजा का राज्य चाहते हैं । यह राज्य प्रजा की भाषा में चलना चाहिए। केरल का राज्य न चलना चाहिए अंग्रेजी में न चलना चाहिए हिन्दी में वह तो मलयालय में ही चलना चाहिए ।
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'और भारत की एकता संभालनी है न ? वह शक्य होगा राष्ट्रभाषा द्वारा । बिना एकता के नहीं टिक सकेगी हमारी स्वतंत्रता और न टिक सकता है हमारा सामर्थ्य दुनिया में हमारे देश की प्रतिष्ठा भी नहीं जम पायेगी। और इस देश की भाषाओं में जिस भाषा को बोलनेवालों की संख्या सबसे अधिक होगी और जो भाषा समस्त जनता के लिए आसान होगी ऐसी स्वदेशी भाषा ही राष्ट्रभाषा बन सकेगी। इसलिए मैं आपको कहने आया हूं कि मलयालम की मदद में उत्तर भारत की जनता की भाषा हिन्दी 'एक जरूरी दूसरी भाषा' के तौर पर आप सीख लें और फिर शंकराचार्य की तरह उत्तर भारत पर धावा बोल दें। आपको
सिर्फ आत्मरक्षा करनी है ? या सर्वसंग्राहक एकता का धावा लेकर सर्वत्र पहुंचना है ?
"आप संस्कृत उत्तम जानते हैं। संस्कृत उत्तम तरीके से सीख रहे हैं ।
१६० / समन्वय के साधक