Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
View full book text
________________
सबको, देश के विशाल विद्यार्थी-समुदाय को और देश-विदेश की समस्त मानव-जाति कोचिरकाल तक मिलती रहे, यही प्रार्थना है।
शब्द-लोक के यात्री रमणलाल जोशी 00 दिसम्बर की पहली तारीख को काकासाहेब ने ६४ वर्ष पूरे किये। कितनी पीढ़ियां उन्होंने देखीं, सारा गांधी युग देखा, समाज के अनेक परिवर्तन देखे।
कांग्रेस का और काकासाहेब का जन्म एक ही साल-१८८५- में हुआ। स्वतंत्रता के जन-आंदोलन के वे सेनानी और प्रचारक रहे और स्वातंत्र्य-प्राप्ति के बाद की देश की स्थिति के मूक साक्षी। 'मूक' इसलिए कि स्वराज्य मिलने के बाद काकासाहेब ने स्वदेशी राज्यकर्ताओं को एक भी शब्द सुनाया नहीं है। शायद यह उनके सौम्य व्यक्तित्व और उनकी व्यवहार दक्षता के कारण ही हुआ होगा।
गांधीजी के निकट अंतेवासियों में उनके जैसे थे किशोरलाल मशरूवाला, महादेवभाई देसाई, आचार्य कृपालानी, स्वामी आनंद, नरहरिभाई पारीख, गिडवाणीजी, मानो सप्तर्षि मंडल ही हो ! गुजरात विद्यापीठ के द्वारा गांधी-विचार देशभर में फैल गया। अपने-अपने तरीके से ये सब गांधी जीवन-दर्शन के उदगाता बने। काकासाहेब का काम प्रधानतया रहा शिक्षण और साहित्य के क्षेत्र में । उनके लेखों ने और संभाषणों ने साहित्य में एक नयी क्रान्ति उत्पन्न की। गुजराती लेखकों के भी वे प्रीति पात्र बने और गांधीजी ने उनको 'सवाई गुजराती' की उपाधि दी, काकासाहेब गांधी जी के समय के भाष्यकार और गुजराती गद्य के प्रणेता हो गये। इसकी नींव में है उनकी सौन्दर्याभिमुख कविदृष्टि । उनकी सर्जकता गद्य में रमणीय काव्य का निर्माण कर देती है। उमाशंकर ने काकासाहेब का परिचय देते हुए उन्हें 'कवि' कहा है, यह सर्वथा उचित ही है । ललित निबंध, आत्मपरक निबंध लेखन में काकासाहेब की सिद्धि अनोखी ही है। तदुपरान्त वैचारिक निबंध, स्मरण-कथा, शैक्षणिक विचार, साहित्य-विवेचन आदि में भी उनकी देन मूल्यवान है। काकासाहेब एक सम्मान्य साहित्यकार तो हैं ही (यद्यपि वे अपने को साहित्यकार कहलाना पसंद नहीं करते), किन्त साथ ही वे साहित्यकारों को गढ़नेवाले, साहित्य को भी प्रेरणा देनेवाले, गांधीजी के शिक्षण का प्रचार करनेवाले, एक सात्विक संस्कार सेवक भी हैं । पत्थर में भी प्राण पैदा करने की शक्ति गांधीजी में थी। वहां जो स्वयं रत्न ही थे उनमें कसी ज्वलंत प्रतिभा पैदा कर सकते थे, वह गांधी जी के अंतेवासियों के जीवनकार्य से प्रतीत होता है। एक-एक अंतेवासी मानो गांधीजी की छोटी आवत्ति रूप थे।
कुछ वर्ष पहले काकासाहेब से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था तब श्वेत वस्त्रों में तथा श्वेत दाढ़ी में सुशोभित उनकी मूर्ति एक ऋषि जैसी ही लगती थी ! तत्पश्चात् उनके दर्शन का सुयोग नहीं, मिला किन्तु वृद्धावस्था में जब-जब उन्हें देखा है, तब-तब प्रतीति हुई है कि वार्धक्य भी ऐसा सुंदर हो सकता है !
काकासाहेब का असली नाम दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर है। उनका जन्म ईस्वी सन १८८५ में दिसम्बर की पहली तारीख को कार्तिक कृष्ण १० के दिन महाराष्ट्र की उस समय की राजधानी सातारा में
व्यक्तित्व : संस्मरण | ७५