Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
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उस दिन मेरे आनंद की सीमा न रही जब योगायोग या ईश्वरेच्छा मुझे रेहानाबहन तैयबजी के पास ले और वहां से हम काकासाहेब कालेलकर और उनकी मंत्री सरोज नानावटी के पास पहुंचे। उन तीनों ने मुझे और मेरी पत्नी को परिवार के अपने लोगों की तरह पूरा अपना लिया और हमारे बीच बड़ी प्रेरणादायक बातचीत होती रही ।
कई वर्षों के बाद १९५८ में काकासाहेब दक्षिण अमरीका के सूरीनाम, ब्रिटिश गियाना आदि देशों में वहां रहनेवाले भारतीयों को मिलने पधारे। मेरी पत्नी ने कहा कि काकासाहेब और डॉ० मार्टिन लूथर किंग के बीच मुलाकात हो तो उत्तम होगा। डॉ० किंग 'मॉन्टगोमरी आलाबामा बस बॉयकॉट, के नेता थे। नीग्रो लोगों के प्रति जो पृथक्करण या अलगाव - नीति वहां चल रही थी, उसके विरुद्ध बसों का यह बहिष्कार हो रहा था । नीग्रो लोगों का यह अहिंसक आंदोलन था। 'अमरीकी फ्रेंड्स सर्विस कमेटी का प्रतिनिधि होकर मैं काकासाहेब को और सरोज को मॉन्टगोमरी ले गया। वहां डॉ० किंग के साथ अहिंसक आंदोलन के प्रश्नों पर गहरी चर्चा सुनने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ । काकासाहेब वर्षों के अनुभव से बोल रहे थे और युवा डॉ० किंग, जिनके सिर पर बिन मांगी गंभीर जिम्मेदारी आ पड़ी थी, अनेक गंभीर प्रश्न पूछते रहे ।
दूसरे या तीसरे दिन डॉ० किंग को सभा में जाना पड़ा। शाम को हम डॉ० किंग के गोल कमरे में बैठे थे । योग पर बातें चल पड़ीं। मैंने कहा कि वर्षों से शीर्षासन सीखना चाहता हूं। मैंने सुना था कि पंडित जवाहरलाल नेहरू कहा करते थे कि शीर्षासन करने से दुनिया का नया दर्शन मिलता है । काकासाहेब ने कहा कि यह तो करना आसान है। उन्होंने एक तकिया जमीन पर रखा, उसपर मेरा सिर रखवाया और फिर मेरे पैर ऊपर उठाये । इससे मैं बड़े अभिमान से कह सकता हूं और कहता भी हूं कि मैं ही एकमात्र गोरा हूं, जिसने डॉ० किंग के कमरे में शीर्षासन किया हो ।
काकासाहेब और उनके परिवार के साथ घनिष्ठ परिचय होने के कारण मुझे भारत का ऐसा अनोखा दर्शन हो सका है, जो शायद ही किसी परदेशी अफसर को मिल सका हो। मैं उनका अत्यन्त ऋणी हूं | O
अमरीका पर उनकी छाप
मेरी कुशिंग ( 'खुशी') नाइल्स
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१९५४ में भारत छोड़ने से पहले मैं क्लिफर्ड मेन्शार्ड को मिलने गयी थी। भारत-अमरीका के बीच व्यक्तियों के आदान-प्रदान की योजना का कार्य उनके हाथ में था। मैंने कहा कि भारत की प्राचीन संस्कृति और अद्यतन अनुभवों के बारे में अमरीका को बड़ा लाभ हो सकता है, यदि आचार्य काकासाहेब कालेलकर को अमरीका आमंत्रित कर सकें और वहां उनका सम्पर्क डॉ० मार्टिन ल्यूथर किंग, जूनियर से और अहिंसक आंदोलन के वहां के दूसरे नेताओं से करवाया जाय, जो अमरीका में नीग्रो लोगों के अधिकारों के लिए आंदोलन कर रहे हैं। डॉ० मन्शार्ड ने उनकी उम्र पूछी। मैंने कहा, “६६ ।" डॉ० मन्शार्ड ने कहा, "आपकी बात सच है कि उनकी काफी सहायता मिल सकती है, किन्तु उनकी उम्र ज्यादा है । अमुक उम्र तक के लोगों को आदानप्रदान के कार्यक्रम में भेज सकते है।" मैं उदास हुई। मन में तय किया कि किसी दिन मैं काकासाहेब को वहां ले जाने का प्रयत्न करूंगी।
१६५७ में इसके लिए गुंजाइश हुई, जब हमने सुना कि 'इंडियन कौन्सिल ऑफ कलचरल रिलेशन्स'
११६ / समन्वय के साधक