Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
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बड़ा मुश्किल है। वह नम्रता और विश्वात्मक्य की भावना-साधना पर चल रहे हैं। छोटे-बड़े, सभी के लिए उनका प्यार सामान है। ऐसे ऋषि-तुल्य, हिमालय-स्वरूप, काकासाहेब के पावन चरणों में मेरे कोटि-कोटि साष्टांग प्रणाम !
वल्लभ विद्यालय की प्रेरणा-मूर्ति शिवाभाई गो० पटेल
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सन् १९३० में जब देश में पूर्णस्वराज की लड़ाई शुरू हुई तब दांडी कूच में काकासाहेब ने, जो उस समय विद्यापीठ के आचार्य थे, दो अरुण टुकड़ियां तैयार की, जो बारह-बारह विद्यार्थियों और कार्यकर्ताओं की थीं। वे टुकड़ियां दांडी कूच के मुकामों पर आगे से जाकर सफाई की, रहने की, भोजन की समुचित व्यवस्था करें, ऐसी व्यवस्था की थी। इससे दांडी-यात्रियों को बहुत सरलता रहती थी, साथ ही गांववालों को अनुकूलता होती थी।
आखिरी दिन ६ तारीख के सुबह पूज्य बापूजी ने इन अरुण टुकड़ियों के २४ सदस्यों को दांडीयात्रियों में समाविष्ट कर लिया था। ये सब नमक-सत्याग्रह में शामिल हो गये।
भाई शामलभाई (मलातज, ता० पटेलाद) सन् १९३३ में काकासाहेब के साथ जेल में थे। तब से वह स्वतंत्रता की लड़ाई में सक्रिय भाग लेते थे। वे सन् १९३० में विद्यापीठ के विद्यार्थियों के साथ बोचासन में आये और बोचासन ने महसूल न देने का प्रस्ताव किया था। इससे उनके घरों में कुर्की लाकर सरकार महसूल वसूल न कर सके, इसलिए पास की गायकवाड़ी सीमा के खेतों में मंडवे बनाकर वह रहते थे। उनके साथ मंडवा बांधकर रहने गये।
उस समय सत्याग्रहाश्रम से गंगाबहन आश्रम की बहनों के साथ भाई शामलभाई के साथ काम करने आयीं।
इस तरह गांव का आश्रम के और विद्यापीठ के सत्याग्रही भाई-बहनों के साथ पारिवारिक संबंध हुए। सत्याग्रही फुरसत के समय बच्चों को पढ़ाते, कताई करना सिखाते और सभा करने में सहायक होते। इसलिए जब सन् १९३१ में गांधी-इविन-संधि हुई तब गांव के लोगों ने कहा, "तुम सभी हमारे साथ रहना और हमारे बच्चों की पढ़ाई में सहायक होना।"
__उनकी अभिलाषा थी कि गांव में जो सातवीं कक्षा तक की पढ़ाई की व्यवस्था है, वह बढ़कर आगे हाईस्कूल तक हो और उसमें ये स्वयंसेवक ही कार्य करें।
भाई शामलभाई ने गांव की अभिलाषा पूज्य काकासाहेब के सामने रक्खी।
बंबई के श्रीमान नगीनदास अमुलखराय ने जीवन में किफायत करके बचाई हुई एक लाख रुपये की रकम ग्राम-सेवा के लिए गांधीजी को दी थी। गांधीजी ने वह रकम विद्यापीठ के आचार्य काकासाहेब को सौंप दी थी।
इसलिए काकासाहेब की इच्छा थी कि गुजरात के प्रत्येक जिले में दलित और उच्चजातीय लोगों को जोड़नेवाली संस्था स्थापित की जाय ।
१० / समन्वय के साधक