Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
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१९६२ में सुरुचि छापाखाना आरंभ किया गया । छापाखाना शुरू करने में दो महानुभावों की प्रेरणा थी। एक थे स्वामी आनंद, जिन्होंने नवजीवन प्रेस की शुरुआत से ही छपाई - कला के बारे में नई राह ढूंढ़ने का काम किया था । उनके मन में जो बाकी रह गया था, वह हमारे द्वारा पूरा कराने का उन्होंने विचार किया । दूसरे थे काकासाहेब, जिन्होंने नई तालीम सम्मेलन में कहा था कि यदि पाठशाला में उद्योग दाखिल करने में हम सफल न हुए तो उद्योगशाला में शिक्षा दाखिल करेंगे । छपाई - व्यवसाय जैसे उद्योग में शिक्षा दाखिल करके सूरत जिले के औरगुजरात के भी आदिवासी युवकों को — उसमें भी खास करके हलपति खेत-मजदूर के बेटेलिए एक नई शिक्षा की संस्था स्वाश्रय के आधार पर चलाने का संकल्प किया। संकल्प को बुजुर्गों और हितेच्छुओं के आशीर्वाद प्राप्त हुए । प्रयोग सफल होता हुआ दिखाई देने लगा । तब उसीके आधार पर सन् १९७० के जून मास की २५ तारीख को यंत्र - विद्यालय का प्रारंभ काकासाहेब के कर-कमलों से बारडोली
हुआ ।
ऐसी दो टेक्निकल शिक्षण संस्थाएं स्वाश्रयी शिक्षा 'कमाओ और पढ़ो' के आधार पर चल रही हैं। इन दोनों संस्थाओं का प्रेरणाबल काकासाहेब ही रहे हैं। मेरी निजी शिक्षा से लेकर अभिनव शिक्षा प्रयोग में काकासाहेब ने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से मदद की है। ऐसे अपरिचित रास्तों पर चलने की प्रेरणा काकासाहेब जैसे प्रखर गांधीवादी शिक्षाशास्त्री ही दे सकते हैं । O
परिणत सुविचार की पवित्र खान पुंडलीक कानडे
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पू० काकासाहेब कालेलकर के जीवन का सिंहावलोकन करते हुए ऐसा दिखाई देगा कि जहां वे गये, जिन-जिन संस्थाओं से सम्बन्ध और सम्पर्क होता गया, वहां-वहां उनका स्वागत हुआ, संत्कार हुआ। इतना ही नहीं, किन्तु गोद लिये पुत्र के समान उन उन संस्थाओं के उद्देश्य और सिद्धांतों में और उन संस्थाओं के गठन में काकासाहेब का योगदान सबसे अधिक रहा । किन्तु उन्हें अपना क्षेत्र तब प्राप्त हुआ जब वे गांधीजी के सान्निध्य में आ पहुंचे।
सन् १९१३ में काकासाहेब रामकृष्ण मिशन के बेलूर मठ में और उसके बाद कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर के शांतिनिकेतन में दाखिल हुए। एक विद्वान की हैसियत से शांतिनिकेतन में स्वागत हुआ ही, किन्तु अपने शुद्ध अन्तःकरण के कारण उसके परिवारिक सदस्य हो गये । शान्तिनिकेतन में गांधीजी से उनकी प्रथम भेंट हुई। गांधीजी के साथ काकासाहेब की तात्विक चर्चाएं कई दिनों तक चलीं। गांधीजी को उसके बाद कई ध्येयनिष्ठ कार्यकर्ता मिले। जिनमें काकासाहेब और विनोबा के नाम विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं ।
दोनों ही आज गांधी-विचार और गांधी-दर्शन के प्रामाणिक विवेचक माने जाते हैं। भारत में गांधीदर्शन सिखाने के लिए विश्व में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए और उस दर्शन को अपने जीवन में ओत-प्रोत करने के लिए, इन दोनों ने विपुल साहित्य का निर्माण किया है, जो अनेक भाषाओं में प्रकाशित हो चुका है । सन् १९२० में ‘असहयोग आन्दोलन' के साथ राष्ट्रीय शिक्षण देने के हेतु गांधीजी ने गुजरात विद्या९६ / समन्वय के साधक