Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
View full book text
________________
हुआ। काकासाहेब का परिवार सावंतवाड़ी की ओर का था। उनका वतन माणगांव के पास का गांव कालेली था। उनका कुलनाम राजाध्यक्ष था, किन्तु बाद में कालेली पर से कालेलकर हो गया । सावंत - वाड़ी में डाकुओं का उपद्रव बढ़ जाने से कालेलकर परिवार सावंतवाड़ी छोड़कर बेलगांव के पास आकर बस गया । काकासाहेब का जन्म हुआ तब उनके पिता श्री बालकृष्ण जीवाजी कालेलकर सातारा जिले के कलेक्टर के प्रमुख हिसाबनवीस मे माताजी राधाबाई (पर्वाधम के गोदावरी बाई) शाहपुर के भिसे-परिबार की थीं। दोनों सदाचारी और रूह धर्म के मानने वाले थे। छ भाई और एक बहन में काकासाहेब सब से छोटे थे। उनके बचपन का काव्यमय वर्णन उन्होंने 'स्मरण यात्रा' में किया है।
1
1
1
Sararara का प्राथमिक माध्यमिक शिक्षण कारवार, धारवाड़, बेलगांव - अलग-अलग स्थानों में हुआ। काकासाहेब के मन पर पारिवारिक वातावरण का प्रकृति प्रेम का और अपने शिक्षकों का अच्छा प्रभाव रहा। सन् १९०२ में सतह साल की उम्र में, जब वह छठी कक्षा में पढ़ रहे थे तब शिरोडकर-परिवार की लड़की लक्ष्मीबाई के साथ उनका विवाह हुआ । १६०३ में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। १९०४ से १९०७ के बीच पूना के फर्ग्युसन कॉलेज में पढ़ाई कर बी० ए० की परीक्षा पास की देश भर में स्वराज्य का आंदोलन चल रहा था। काकासाहेब ने राष्ट्रीय शिक्षक होने का संकल्प किया। उनके मन पर स्वामी विवेकानन्द का और श्री अरविंद का सघन प्रभाव था । १९०८ में बेलगांव के गणेश विद्यालय के वे आचार्य हुए। फिर उसको छोड़कर एल-एल० बी० की परीक्षा पास की। उस वर्ष में माताजी का अवसान हुआ। दो वर्ष बाद पिताजी भी चल बसे। १९२०-११ में गंगनाथ विद्यालय (बड़ोदा) में आचार्य रहे । १६१२ में हिमालय गये । १९१३ में ऋषिकुल हरिद्वार में मुख्य अधिष्ठाता रहने और छः महीने सिंधु ब्रह्मचर्याश्रम में व्यतीत करने के बाद वह गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के शान्तिनिकेतन पहुंचे। वहां छः महीने शिक्षणकार्य किया। वहां गांधीजी से मुलाकात हुई। गांधीजी का परिचय बहुत घनिष्ठ हुआ और काकासाहेब उनके अंतेवासी बन गये । १६२० में 'गुजराती साहित्य परिषद' का अधिवेशन अहमदाबाद में हुआ । रवीन्द्रनाथ ठाकुर भी वहां आमंत्रित थे । गुजरात को रवीन्द्रनाथ की प्रतिभा का परिचय कराने वाला लेख काकासाहेब ने लिखा । यह उनका पहला गुजराती लेख था । १६२८ में गुजरात विद्यापीठ का पुनर्गठन हुआ, तब काकासाहेब 'गुजरात विद्यापीठ' के कुलनायक बने ।
स्वराज्य के आंदोलनों में कई बार वे जेल गये । १६३६ में गुजराती साहित्य परिषद् के बारहवें अधिवेशन में गांधीजी अध्यक्ष थे, तब काकासाहेब कला विभाग के प्रमुख रहे। १९४२ के 'भारत छोड़ो' आंदोलन में भी लम्बे अर्से तक जेल भोगी । १९४८ में गांधीजी का उत्सर्ग हुआ तब गांधीजी के जीवन-दर्शन के मूर्त प्रतीकरूप जो महानुभाव उनके पास थे, उनमें एक काकासाहेब हैं । १९५० में उन्होंने पूर्व अफ्रीका का प्रवास किया। १९५२ में वह राज्य सभा के सदस्य नियुक्त किये गये। १९५२ में यूरोप का प्रवास किया। १९५३ में पिछड़ी जातियों के आयोग के अध्यक्ष बने । १९५४ में जापान का प्रवास किया । १६५६ में सम्पूर्ण गांधी वाडमय की सरकारी योजना के सलाहकार मंडल में नियुक्त हुए। दूसरे ही वर्ष जापान और चीन की यात्रा की । तदनंतर वेस्ट इन्डीज, अमरीका, यूरोप, अफ्रीका के देशों की यात्रा की। १६५६ में मॉरीशस और मैलेगासी की यात्रा की। काकासाहेब यथार्थरूप में विश्वयात्री बन गये। उनकी ये सारी संस्कार यात्राओं के सुंदर वर्णन हमें 'हिमालय की यात्रा' 'सूर्योदय का देश जापान,' पूर्व अफ्रीका' जैसी पुस्तकों में पढ़ने को मिलते हैं। गुजराती साहित्य में उनके कितने ही प्रवास वर्णन लिखे गये हैं, किन्तु आज भी 'हिमालय का प्रवास अत्युत्तम है। विद्यापीठ-निवास के दरमियान काकासाहेब ने अनेक व्यक्तियों के जीवन को बनाया है । अनेक लेखकों की वह प्रेरणामूर्ति रहे । कवि श्री सुन्दरम् उनके विद्यार्थी थे । विद्यापीठ में एक समय ७६ / समन्वय के साधक