Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
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मानवता के पुजारी सोफिया वाडिया
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काकासाहेब के अनुरागियों के लिए यह अत्यन्त हर्ष की बात है कि उन्होंने न केवल इतनी बड़ी आयु प्राप्त की है, किन्तु अब तक भी वे अपने रचनात्मक तथा मौलिक कार्यों और निःस्वार्थ सेवाओं में रत हैं। यह छोटी-सी अंजलि मैं २ अक्तूबर को (गांधी-जयन्ती के दिन)अर्पित कर रही हूं। उसमें बड़ा औचित्य है, क्योंकि मैंने हमेशा काकासाहेब को महात्माजी के सच्चे शिष्य के रूप में देखा है।
काकासाहेब के क्रियाशील जीवन के अनेकानेक और विविध पहलू हैं, किन्तु मैं यहां उनके प्रतिष्ठित तथा महान लेखक के रूप की ही बात करूंगी। उन्होंने बहुत-सी पुस्तकें लिखी हैं। उनमें से कई एक के भाषांतर अनेक भारतीय भाषाओं में किये गए हैं। केन्द्रीय पी० ई० एन० के हम लोग धन्यता अनुभव करते हैं कि काकासाहेब १९३६ में हमारे सदस्य बने--हमारे केन्द्र के स्थापित होने के तीन ही वर्ष बाद । १६६५ में उन्होंने हमारी मानद सदस्यता स्वीकार की। एक प्रसंग मुझे अच्छी तरह याद है। हमारी ३८वीं वार्षिक सभा में काकास हेब पधारे थे। मैं अध्यक्षा थी। उनके स्वागत में कुछ शब्द कहने के पश्चात मैंने काकासाहेब से अनुरोध किया कि वे सभा में प्रवचन करें। काकासाहेब ने कहा कि दूर परदेशों के पी० ई० एन० केन्द्रों को देखकर बड़ा आनन्द हुआ था और वहां उन्हें घर जैसा लगा था। अफ्रीका, जापान और अमरीका का उन्होंने विशेष उल्लेख किया। फिर पी० ई० एन० और उसके सदस्यों के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कर्तव्य के विषय में उन्होंने कहा कि मानवता और विश्वसाहित्य के एक-एक सच्चे केन्द्र तैयार करना, जिसमें कोई सीमाएं या सकुंचितता न हों। इस आदर्श तक पहुंचने के हेतु व्यक्ति को एक सर्व-साधारण दुर्बलता पर विजय पाना होगा। वह दुर्बलता है धर्म, राष्ट्रीयता या शिक्षण के कारण उत्पन्न अहंकार की। उन्होंने आगे कहा कि कोई भी धर्म सबसे अच्छा या ऊंचा होने का दावा करके मानवता के भ्रातृत्व को ठेस न पहुंचाये। सार्वजनिक सभा में बोलते हमेशा की तरह उनकी वाणी बड़ी हृदयस्पर्शी, प्रभावकारी, सौम्य तथा तेजस्वी थी।
काकासाहेब के स्वभाव में मानवता निखर आती है। हर प्रकार के, हर स्तर के, लोगों के साथ उनके व्यवहार में सच्ची सहृदयता की ऊष्मा दिखाई देती है। उनमें महान बुद्धि के साथ सहानुभूतिपूर्ण हृदय का सुभग सुमेल पाया जाता है।
काकासाहेब के ६५वें जन्मदिन पर हम उनकी हार्दिक अभिवंदना करते हैं और उनके परिचय तथा सच्ची स्नेह-भरी मित्रता से धन्यता अनुभव करते हैं।
समन्वय के साधक यशपाल जैन
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भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि उसने विविधता के बीच एकता सम्पादित की है । भारत जैसे प्राचीन एवं विशाल देश में भूगोल, इतिहास, धर्म, संस्कृति, कला, भाषा, साहित्य, आचारविचार, रहन-सहन आदि की दृष्टि से वैविध्य होना स्वाभाविक है। भारतीय संस्कृति ने इस वैविध्य को
४० / समन्वय के साधक