Book Title: Kaka Saheb Kalelkar Abhinandan Granth
Author(s): Yashpal Jain and Others
Publisher: Kakasaheb Kalelkar Abhinandan Samiti
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को सरित् कहा है। सरिता का स्वभाव निम्नगामी होता है। उसे इसलिए संस्कृत में निम्नगा' कहा है। सामान्य मानव का जीवन भी इसी तरह स्वभावतः निम्नगामी है। उसे ऊपर की ओर मोड़ना, उठाना मनस्वी पुरुष की अपेक्षा रखता है। उपनिषद् इसी पुरुषकार की प्रेरणा देता है। माली जिस तरह पानी को मोड़ता है और उत्तमोत्तम फूल और फल के बगीचे सींचकर कृतार्थ होता है, उसी तरह मनस्वी पुरुष को अपने जीवन का प्रवाह मोड़कर उसे सवृत्ति, सद्विचार और सद्वर्तन के बगीचे सींचकर फूलते-फलते करने होते हैं। तभी उसका जीवन सफल होता है । 'योजनीया शुभेपथि' का यही आशय है। ऐसे ही पुरुषकार को प्रकट करने वाले मनस्वी पुरुषों को मैं ऊर्ध्वरेता कहता हूं। प्रायः सभी समय और सभी समाज में ऐसे अग्रणी महापुरुषइने-गिने ही क्यों न हों-हुआ करते हैं, यह भगवान् की परम कृपा है । इन्हीं के नेतृत्व में मानव समाज अग्रसर होता हुआ अपने लक्ष्य तक पहुंचने वाला है।
हमारे युग में ऐसा एक महापुरुष हो गया है गांधी, जिसके सन्निधि में वही शुभ प्रेरणा लेकर जिन्होंने अपना जीवन कृतार्थ किया है, उनमें काकासाहेब कालेलकर का स्थान विशिष्ट है। गांधी की मूल प्रेरणा और प्रयास 'स्व'राज्य यानी आत्म-शासन की स्थापना के रहे हैं । उसका एक अंश अंग्रेजों के विदेशी शासन को हटाना था। यह कार्य ऊपरी दृष्टि से देखने से तो भौतिक ही दीखता है, परंतु उसे प्राप्त करने के जो साधन गांधी ने निश्चित किये और अपनाये थे और जिनका आग्रह उन्होंने अन्तिम श्वास तक रक्खा, उन सत्य और अहिंसा की ओर ध्यान दिया जाय तो कहना होगा कि यह भौतिक नहीं, आध्यात्मिक कार्य था। इस लक्ष्य का दर्शन काकासाहेब को स्पष्ट रूप से हआ और सत्य और अहिंसा पर उनकी निष्ठा अविचल रही है। अनेक अच्छे-अच्छे लोग भी स्वराज्य प्राप्ति के आन्दोलनों में बह गये और सत्याग्रह अर्थात् सत्य के लिए अहिंसा का आग्रह उन्होंने छोड़ दिया; परंतु काकासाहेब ने कभी उनकी पुष्टि नहीं की, न तोड़फोड़, न मार-काट का समर्थन किया; क्योंकि इस तरह प्राप्त होने वाला राज्य स्वराज्य या रामराज्य नहीं हो सकता, इसका उन्हें पूरा विश्वास था। 'नत्वहं कामये राज्यम्" और "यतेमहि स्वराज्ये" यह जो वैदिक आर्यों का निषेध रूप और विधिरूप घोष-वाक्य रहा है, उस पर वे बराबर चलते रहे हैं और इस आदर्शरूप स्वर्ग को धरा पर उतारने के कार्य में मनसा-वाचा-कर्मणा आजीवन संलग्न रहे। जो कुछ उन्होंने किया, जो सोचा या लिखा या बोला, वह सब इसीमें आ जाता है। उसका विस्तृत विवरण उनकी जीवनी में पढ़ा जा सकता है। काकासाहेब इस युग के ऋषि हैं।
नमः परम् ऋषिभ्यो, नमः परम् ऋषिभ्यो। ०
वंदनीय काशिनाथ त्रिवेदी 00
श्री काका कालेलकर हमारे देश के उन बिरले सौभाग्यशाली गुरुजनों में से हैं, जिन्हें आज से चौंसठ बरस पहले, सन् १९१५ में, उस समय के कर्मवीर गांधी को गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के शान्तिनिकेतनआश्रम में बहुत निकट से देखने, जानने और समझने का सुअवसर मिला था। गांधीजी के साथ शान्तिनिकेतन में हुई अपनी पहली भेंट-चर्चा से काकासाहेब इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना शेष सारा जीवन देश-कार्य
व्यक्तित्व : संस्मरण | ५३