Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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देवमद्दसूरिविरहओ कहारयणकोसो ॥ सामनगुणाहिगारो। ॥१७४॥
SARKARI
आलोचकव्यतिरेके धर्मदेवकथानकम् २३ ।
कयखंधावारनिवेसो ठिओ पच्छिमभूमीए । कमेण य इओ ततो मिलिएसु कइवयसामंताइसु पडिओ सदेसाभिमुहं ।
जाणियपराजयवचेण य अंतरा केरलदेसाहिवइणा नियडीसीलयाए सायरमुवनिमंतिऊण सम्माणिओ भोयण-पवरवत्थाऽलंकाराइदाणेण । भणिओ य एगंते, जहा-सेणावरिद्व! एत्तो सनिकिट्ठदेसवत्ती महाबलो सामंतो पउर[कोस-]कोडागारो संपयं अप्पचलो बट्टा, ता जह तुम सहाई हवसि ता तं मिलिया चेव गिहामो, अद्धद्धेण य तदुवलद्धरिद्धिवित्थरं संविभजामो य । इमं सोचा अविभावियकजमझेण अणालोचिय नियमंतिजणेण पडिवयं सेणाहिवेण । ततो दोहि वि दिन पयाणयं । अद्धपहे संकेइयनियमहडेण केरलवाइणा सबतो निरंभिऊण लूडिओ धम्मदेवसेणाहिवई । उद्दालियकरि-तुरगाइपरिग्गहो य सुसाहु व सरीरमित्तो पलाणो एगाए दिसाए । पचो य कह कह वि गुरुकिलेसा-ऽऽयासविसोसियसरीरो एग तावसासमं । कंद-फलाइदाणेण पीणिओ तावसेहिं । वुत्थो य तत्थेव कइवयदिणाणि, चिंतिउं पवत्तो य-अहो ! मे मंदभग्गया, अहो! असमिक्खियकारिया, जमेवं भुञ्जो पराजिओ परेहि, अवहरियं सबस्सं, संचारिओ सबदिसासु अजसो, जाजीवं पराभवपयमुवणीओ अप्पा, दरबत्ती जाओ रायपायसेवाए, ता अलं एत्तो सगिहगमणेण, एत्थेव आसमपए | पवजामि पुबपुरिससेवियं धम्ममग्ग-न्ति पडिवो कुलवइसमीवे तावसदिक्खं । पारद्धा य असमिक्खियनियबलेण निवारिअमाणेण वि सेसताबसेहिं विविहा दुकरतवोबिसेसा ।
इओ य सुओ एस वइयरो कित्तिधरनराहिवेण मंतिपमुहलोयातो, जहा-इत्थमित्थं च अणालोचियवत्थुसमत्थणेण निभासियं सेनं धम्मदेवेणं, एगागी य संयुत्तो कत्थइ तावसासमे तावसदिक्खं पवमो त्ति । 'हा हा ! कहं तारिसमहापुरिस
॥१७४॥
KAARYAKARAOKARNARAKASHARABHAKAASHAKRAKAR
अंगीकरेसु दक्खिन, पडिवजसु पणयवच्छल्लेण सप्पुरिसमग्गं, हवउ आचंदकालियं परोप्परपाहुडपेसणेण सिणेहववहारो ति । अह अणालोचियसमुचियकिचविसेसेण कोवभररहयभालवट्टभिउडिणा भणिय सेणाहिवेण-अरे रे दुरायारा! अम्ह पहुणो देसमसेसं लूडिऊणमियाणि संधिकवडेण ममं विप्पलंभिउमुवट्ठिया, किमह डिभो जमेवं मुहमहुरवयणमित्तेण वि विप्पयारिजामि ? ता रे ! साहह तस्स रबो नीसेसकरि-तुरय-कोस-कोट्ठागारसमप्पणेण आजीवं निम्भिच्चभिचभावदसणेण य सेवाविर्ति पडिवजसु, विसिटुं द्वाणंतरं वा अप्पणो पलोएसुत्ति, एस सेणावइणो संधिबंधमुद्दाविनासो त्ति । तेहि भणियंसेणाहिव ! कइवयनिस्सारखेडयलूडणेण बि एवंविहपयंडडडडामरमजुत्तं ?-ति परिभाविऊण आएसमुचियं वियरसु ति । सेणाहिवेण भणियं-अस्थि कोइ एत्थ जो कंठे धरिऊण निच्छुभइ इमे अलियजंपिरे याहमे ? ति । ततो निद्धाडिया ते सेवगेर्हि । गएसु य तेसु अवक्खंददाणाय दवाविया सन्नाह मेरी, पउणीकरावियं चाउरंग बलं । 'अहह ! सहसाकारि' त्ति जायचित्तसंतावेण भणियं से मंतिजणेण-भो सेणाहिव ! सम्ममणालोचियकीरमाणकजाण पमुहमहुराण । परिणइदुहाण जाणसु किपागफलेहिं तुल्लत्तं
॥१॥ जह कह वि कल-कारणवसेण केणावि सिंहलनिवेण । संधि पडच पणई पयासिया दंसिओ सामो ॥२ ॥ ता किं तेमेचिएण वि उत्तुणओ भविय कयफडाडोवो । संभावियरिउविजओ रणस्थमित्थं पयट्टो सि? ॥३॥ किं मुणसि तुम न इमं दूरं ओसरह पहरिउ मेसो । संकुइय केसरी कोवओ य पुण उप्पइउकामो? ॥४॥ १लष्टयित्वा ॥ २ निर्मव्ययभावदर्शनेन ॥३ दिन प सं. प्र. ॥४ "तिणा ज' सं. प्र. ॥ ५ त्वमेतावताऽपि गर्वितो भूत्वा ॥
ASSOCISCESCANCCASSAMAN

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