Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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देवमदसूरिविरइओ
कहारयण
कोसो ॥ बिसेसगु णाहिगारो । ॥२६५॥
परवीवाह विहाणं निर्ययावच्चेसु नेव पडिसिद्धं । कैन्नाहलहेउं पुण तकरणं होइ अहयारो चिरभ गयजोवणमिति बुद्धीए परं पुणो जुवई । वीवाहइ अप्पाणं इय परवीवाह करणं वा कयकामसेवणस्स वि तं दीवंतस्स ओसहाईहिं । इच्छानियत्तिविरहा अइयारो पंचमो नेओ पढमाइयारदुगमिह सदारसंतोसिणो परं जाण । सेसतिगं दुन्हं पि हु साहारणमेव अवसेयं
॥७॥ ।। ८ ।। ॥ ९ ॥
॥ १० ॥
एत्थ य एवं भावणा-सदार संतोसिणो हि वेसं दाणेण धोयकाल अप्पणीकाऊण 'मम भज श्चिय इम' त्ति सेवंतस्स वयसावेक्खत्तणेण न भंगो, थोयकालपरिग्गहाओ य परमत्थओ न नियभज त्ति भंगो [त्ति ] भंगा-भंगरूवो अइयारो चि १ । अपरिग्गहियागमणं पुण अणाभोगाइणा अडकमाइणा वा अइयारो ति २ । परदारवजिणो पुण एयमइयारदुर्गं न संभव, थोयदिपरिग्गहिया ऽपरिग्गहियाणं पणगणत्तणेण कुलंगणाए वि अणाहत्तणेणेव परदारताभावाउ ति ।। अन्ने भांतिपरदारवजिणो पंच हुंति तिनि उ सदारसंतुडे । इत्थीए तिन्नि पंच व भंगवियप्पेहिं नाय ।। १ ।। एत्थ वि एसा भावणा- - परेणेव थोवकालं जा परिग्गहिया वेसा तग्गमणमध्यारो, परदारवजगस्स कहंचि तीए परदारत्ताउति १ । अणाहाए कुलंगणाए जं गमणं तं पि तस्सेव अइयारो, लोए परदारचेण तीए पसिद्धीओ । तस्स य कष्पणा इमा - भत्तुणो अभावाओ न एसा परदार ति २ । सेसा पुण दोन्हं पि, तहाहि —सदार संतोसिणो सकलते इयँरस्स
१ निजकायेषु ॥ २ कन्याफलहेतोः ॥ ३ दोहं प्र० ॥ ४ अवक प्र० ॥ ५ पणाशनात्वेन ॥। ६ परेण थो° खं० ॥ ७ 'इतरस्य' परदारवर्जिनः ॥
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सकलते वेसायणे य अगंगकीडा अइयारो, एवंकरणे हि ईच्छानियत्तिविरहाओ तविरईए असारतं ति १ । एवं परवीवाहकामतिवाभिलासा हि दडवा । नवरं 'परं अहं वीवाहेमि, न मेहुणं सेवावेमि' त्ति वयसावेक्खयाए अइयारो । न य परवीवाहकरणं कन्नाफलाइबुद्धीए न संभवइ मुद्धबुद्धिणोऽहाभहगस्स वा मग्गावयरणत्थं दिनवयस्स त्ति २ । ३ । इत्थीए पुण सपुरिससंतोस - परपुरिसवजणाणं न भेओ अस्थि । अणंगकीडाइणो य सदारसंतोसिणो व सपुरिसविसए संभवति । पदमो पुण जया नियपई चिय सवित्तिवारयदिणपवनं कामेइ तथा अइयारो, बीओ पुण अइकमाईहिं चैव अइयारो ति । कथं पसंगेण ॥ छ ॥
एवमइयारपरिहारसुंदरं वयमिमं पवन्नस्स । गिहिणो वि न दुल्लभा महल्लकल्लाणसंपत्ती ॥ १ ॥
इमं च सवं सम्ममेगग्गमाणसो अवधारिऊण गुरुपुरओ जयमाली रायसुओ पडिवन्नो परदारनिवित्तिवयं, गओ य जहागयं । साहू वि उप्पइओ मरगयभायणसामलं गयणयलं । भुजो भुजो अणंग केउविजहरदुव्विलसियं विभावितस्स बाल- गिलाण - तवस्सीणं च ओसहाइसमध्पणेण वेयावच्चं कुणंतस्स वच्चंति से वासरा ।
जह जह स निवियारं पि नेय चक्खुं पि खिवह सुमृणिव । पुरसुंदरीउ तह तह दढयरवतरागाओ मैयणसरजजरंगी इति तं सेविउं निसासमए । बहलतमसामले लजिरीउ उच्छन्नवसाओ कइवयदिणगहियपरिग्गदं पि अपरिग्गहं व अप्पाणं । मनंतीओ अन्नातो तं ददं उवयरिंति बहु
१ इच्छानिवृत्तिविरहात् ॥ २ "तिब्वयं प्र० । ३ मदनशरजर्जराजयः ॥ ४ इन्ति प्र० ॥
॥ १ ॥ ॥ २ ॥ ॥ ३ ॥
स्यूतमैथुनविरतौ
सुरप्रिय.
कथानकम्
३७ ।
स्वदारसन्तोषिणः परदारवर्जि नश्चाश्रित्यातिचारविभागः
॥२६५॥

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