Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
View full book text
________________
देवभद्दमरिविरहओ कहारयणकोसो॥ विसेसगुजाहिगारो। ॥२९॥
ॐ अनर्थदण्ड
बते चित्रगुप्तकथानकम् ४१॥
हत्थतलमेत्तयं पि हु भूमियलं कसइ जो सुसाहू वि । पाउणइ पैसुत्तं तयणु णेगसोबागजम्माई ॥ १३ ॥ झाण-उज्झयणाईणं हाणी हीलापयं च संगातो । तीए दाणं गहणं च तेण साहूण पडिसिद्धं
॥ १४ ॥ तंबोल-तूल-पल्लंक-पणइणी-चित्तचेलगहणं पि । दरनिसिद्धं रागाइदोससंभूहभावातो जं पुण पतं वत्थं कंबल रयहरणमन्त्र पाणं च । संथारयाइ तं कप्पई य धम्मोवतोगि त्ति
॥ १६ ॥ तहाहिकट्ठा-ऽलाबुसमुत्थं कारणतो मिउँमय पि पत्तमिह । घेत्तुं जेतुं जहणो गिहिमायणभोयणनिसेहा ॥१७॥ तहाहिकंसेसु फैसपाएमु कुंडमोएसु वा पुणो । भुंजंतो असण-पाणाई आयारा परिभस्सह
॥१८॥ सीओदकसमारंमे मत्तधोयणछडणे । जाई छति भूयाई दिट्ठो तत्थ असंजमो
॥ १९ ॥ पच्छाकम्म पुरेकम्मं सिया तत्थ न कप्पई । एयमहूँ न भुजंति निम्गंथा हिमायणे
॥ २० ॥ सीयाइणा परद्धो सिहिजालण-तणपरिग्गहाईहिं । जीवे वहे जई जे जुत्तो वत्थग्गही तेण ॥ २१॥ सचित्तसलिल-महिगा-रयं-संपाइमपमोक्खजीवाण । रक्खट्ठा उवर्ल्ड कंवलगहणं सुसाहणं
॥ २२ ॥ कंबलमहुरत्तगुणेण नो दगाई जिया विवअंति । अइखार-मलिणयाए य अंगसंगम्मि जंति खयं ॥ २३ ॥ १कर्षति ॥ २ पचव तदनु भनेकश्वपाकजम्मानि ।। ३ धर्मोपयोगीति ॥ ४ मृण्मयम् ॥ ५त आरभ्य लोकत्रिदशकालिकसत्रे अ. श्लोक ५०-५२ ॥ ६ कुण्डमोदः हस्तिपादाकारः मृण्मयभाजनमेदः ॥ ७ गिहि प्र० ॥ ८ पीडितः ॥ ९ जीवान् हन्ति ॥ १० रइसं सं०। -महिकारजःसम्पातिमप्रमुखजीवानाम् ।।
॥२९३॥
%A4%A4%AASHARANACHIKASite
स्यहरणं पि हु एगंगियाइगुणसंगयं सया गिझं । लिंगट्ठा रक्खट्ठा य दिस्स-अदिस्साण जीवाण ॥ २४ ॥ पाणा ऽसणदाणं पि हु पयदिणमुवओगि कप्पणिजं जं । बालीसदोससुद्धं धिप्पइ छहिं कारणेहिं परं ॥२५॥ वेयण वेयावच्चे इरियट्ठाए य संजमट्ठाए । तह पाणवत्तियाए छटुं पुण धम्मचिंताए
॥२६ ।। संथारगाइ सेसं पि संजमस्सेव चुड्डिजणगं ति । जुजइ जइणो घेर्नु उझियसंगस्स वि य दूरं
॥२७॥ एवं दाणविहाणे सवित्थरे साहियम्मि भूमिवई । सविणयमाह महायस! जं उवजुञ्जइ तयं गिण्ह ।। २८ ।। साहूवओगि तो किं पि मुणिवरो तस्स भाववुड्किए । घेनुं नरवइपणओ दिनासीसो गओ सपयं ॥ २९ ॥
अह निल्लोभयाइतग्गुणगणरंजियमणेण पुरिससीहेण भणितो राया-देव! एवंविहसुहमपयत्थसत्थदंसी चेव निच्छियं पूयापयरिसारिहो अरिहंतो चेव देवो, तदुत्तकिरियाकलावाणुरूवपारद्धविसुद्धसद्धम्मकिचा एवंविहा चेव मुणिणो गुरुणो घेत्तुमुचिया, न हि अप्पणो समाणदोस-समायारा भूरिपरिग्गहा-ऽऽरं भनिभरपसत्तमाणसा तहाविहजडाजूड-सिहंड-डंड-मुंडमुंडणपहाणपमुहबज्झोवयारसारदिक्खामेत्तबद्धलक्खा सयं पि अगाइभवोहवुब्भमाणा भवनवावडियमम्हारिसं जणमुद्धरिउ खमा, ततो नियमेण एस समणसीहो अम्हाण पुनपगरिसपेरितो व इहागतो, अतो पइदिणं पज्जुवासणा समुचिय त्ति | राइणा भणियं-सुट्ट उवइहूं, अन्यैरपि भणितमेतत्
१ पइदि प्र. ॥ २ द्वाचत्वारिंशदोषशुद्धम् ।। ३ एवंविधसूक्ष्मपदार्थसार्थदी ।। ४ पूजाप्रकर्षादः ॥ ५ तथाविधजटाजूटशिखण्डदण्डमुण्डमुण्डनस्नानप्रमुखबायोपचारसारदीक्षामात्रबद्धलक्षाः स्वयमपि अगाधभयौषोधमाना: भवार्णवापतितमस्मारशम् ।। ६ खमंतोतानि सं० प्र.

Page Navigation
1 ... 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393