Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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सामायिक| व्रते मेघरथकथानकम् ४२।
देवभइसरिविरइओ कहारयणकोसो। विसेसगुणाहिगारो। ॥३०॥
सावस्थि-हस्थिणाउर-चंपा-कंपिल्ल-उज्झनयरीसुं । कोसंबी-वाणारसि-महिलापमुहासु य पुरीसु ॥१॥ सम्मेयसेल-सत्तुंजयाइतित्थेसु अनहिं पि तुमं । वंदाविजसु देवे उसभाई वीरपजते
॥२ ॥ तो भूमिवट्ठठविउत्तमंगमंगे अमंतहरिसभरो । राया वंदइ देवे संमुद्धरोमंचकंचुइतो
॥ ३ ॥ अह देववंदणाओ विरई रायाणमुल्लवइ स पुणो । कुवंति धम्मलाभं मुणिणो तो वंदइ स ते वि
॥४ ॥ सावगवग्गो वि करेइ वंदणं इति पुणो वि संलते । पडिवंदर ते विनमंतमत्थओ पस्थिवों सम्म ॥ ५॥ उचियासणमासीणं अह तं ससिणेहमुवैराहिवई । जंपइ तुह निखूढा निविग्धा तित्थजत्त ? त्ति दिवसाणि केचिराणि य विमुक्कगेहस्स इह पयदृस्स ? । सो भणइ देव ! बारस जायाई इण्हि वरिसाई ॥७ ॥ वागरइ तं च राया धन्नो कयलक्खणो तुम चेव । जो चत्तगेहमोहो करेसि महिम जिणंदाणं
॥ ८॥ अम्हे पुण एक पि हु कहं पि तित्थं पलोइउमसका । सोढवा ही ! सुचिरं भवभमणविडंवणा भीमा ॥९॥ इय भूरिसोगभरगग्गरक्खरं भूवई भणइ सेट्ठी । तुम्भेहिं देव ! दिढ दद्ववमिहट्ठिपहिं पि
॥ १० ॥ जेसुं जिणेसु भची तग्गयचित्तत्तणं च अचंतं । नहु अच्छीहिंदीसंति जिणवरा मोक्खसंपत्ता
॥११॥ अह सो रबा बुत्तो इमेसि तित्थाण किं पुण महत्थं । तित्थं ? ति तेण खुत्तं नरवर ! किमिमं तए न सुयं १ ॥ १२ ॥ १ भूमीपृष्ठस्थापितोत्तमान बजे अमावर्षभरः ॥ २ समूईरोमान्चकन्चुकितः ॥ ३ चिरतम् ॥ ४ वो य समं प्र० ॥ ५ 'उर्वराधिपतिः' राजा ॥ ६ 'इह' तीर्थयात्रायां प्रवृत्तस्य ॥ ७ व्याकरोति ॥८"ए कि पि खं० प्र० ॥
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का॥३०॥
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इतो लघुत्वं गिरिवद् गरीयः, पदं विपत्तेरमुतश्च सद्यः । अधर्मकर्माण्यपि नूनमस्माद्, विधिसति प्राणिगणः समग्र: इति सततमनर्थदण्डदोषाद्, विषमपथादिव सन्निवर्त्य चेतः । तुरगमिव चलन् विशिष्टमार्गे, विदधदुपैति समीहितप्रदेशम्
॥४।। ।। इति श्रीकथारत्नकोशेऽनर्थदण्डविरतिचिन्तायां चित्रगुप्तकथोत्या गुणवतत्रयं समाप्तम् ।। ४१ ॥
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१ "रिवं ग खं० प्र० ॥२ विधातुमिच्छति ।।

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