Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 322
________________ देवमदर विरइओ कहारयण कोसो ॥ बिसेसगुमाहिगारो ॥२९९॥ * জনএ चत्तारि सिक्खावयाणि । इति गुणवयजुत्तो वि हु सीयइ सिक्खावएहिं परिहीणो । ता इन्हि तस्सरूवं लेसुद्देसेण कित्तेमि सिक्खा इह अन्मासो तेण पहाणाई जाणि उ वयाई । सिक्खावयाई ताई ताण य सामाइयं पढमं रागाईविरहातो समस्स आतो य णाणमाईणं । लाभो इहं समातो सो कअं जस्स किश्चस्स तं सामाइयमुचइ सद्दत्थो एस तस्सरूवं च । सावञ्जजोगवजण मणैवजासेवणं सम्म इह निउत्तचित्तो गिही वि समणो व नूण पडिहाइ। अचंतमुत्तरोत्तर विमुद्धनाणाइलामातो पावस्स उभूयं चित्तं चिय तं च रुब्भइ भर्मतं । सवत्थ समीरं पिव तेणेह मेंहं कुसललाभो ता पुर्वजन्मजणियं पावं विष्फुरई वित्थरइ अरई । सद्धम्मकम्मविसया विसएसु य गिज्झई ताव तरलायह ताव तुरंगचंचलो दूरमिंदियग्गामो सामाइयं पवजइ जावऽञ्ज वि नेव निवियप्पं सामाइयं पवनो गिद्दी वि तियसाणमवि हवइ पुञ्ज । परमं च पसायपयं मेहरहो एत्युदाहरणं तहाहि — अत्थि कलिंगदेस लच्छि विच्छड्डाखंड भंडारागारभूयं, भूय-भविस्सपरिमाणनिउणनाणाविहनाणिजणोववेयं, वेर्य७ वि वहद्द सं० प्र० ॥ १ आयः ॥ २ समायः ॥ ३ अनवद्यासेवनम् ॥ ४ महान् ॥ ५ अत्थ' सं० ॥ ६ गृध्यति ८ लक्ष्मीविच्छार्द ॥ ९ वेदविधिविचारविशारद शारद रजनिकर सौम्या कार गुरुकर्द्धसमुद्धरप्रचुरनरम् ॥ || ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ ॥ ३ ॥ ॥ ४ ॥ ॥५॥ ॥ ६ ॥ || 9 || ॥ ८ ॥ ॥९॥ विहिवियारविसारय- सारयरयणियर सोमागार-गरुयरिद्धिसमुद्धरपउरनरं नरउरं नाम नगरं । जं च सुविभत्ततिय- चउक-चचराssवसह साहिसोहण त्तणेण पढमपडिच्छंद व कुबेरपुरीए । जत्थ य तुंग- सेयपासायसिरोवरिवत्तिणीणं चंदग्गहणावलोयणकोऊहलिणीणं सीमंतिणीणं पसंतकंत मुहसुंदेरविसंकितो समीवोवगयं पि न मयंकं गसिउमभिलसह गैहकल्लोलो । रक्खइ य तं च जिणपाय पडमपूयापय रिसावजियसुकयवारिधाराधोय कलिलो कलिलोवसमसारधम्मवावाराणुरत्तमाणसो मौण-सोयाइदोसवजिओ जयरहो नाम राया । सयलसीमंतिणीगुणोववेया विजया नाम [से] भजा । विणय-नय-सच्च- चीगाइगुणगणालंकितो मेहरहो पुत्ती । सुमंतो नाम [अ] मचो । उभयलोगाविरुद्धवत्थुसंपाडणपरा सबै काल बोलेंति । एगया य राया कयमञ्जणोवयारो पेरिहिययं गनिम्मोयनिम्मलदुकूलजुबलो परिमियपहाणचेड चालुकरपरिबुडो समग्गपूयावग्ग [ वग्ग ] हत्थ पुरिसाणुगम्ममाणो नियभवणेगदेसनिवेसियहिमगिरिसिंगसिंगारहारि जिणहरं गतो । परमपयत्तनिवत्तियजिणपूया बंदणो य जयगुरुनिवेसियानिमेसनयणो आसीणो समुचियासणे । पयङ्कं च अनलियजिणगुणगणपहाणं पेच्छणयं । एत्यंतरे विभत्तो राया परिहारेण - देव ! तुम्हगिहचेइयवंदणत्थं समत्थतित्थ पेहणपूयपावो भावदेवो नाम सेट्ठी दुवारपडिरुद्धो चिट्ठइ ति । राइणा भणियं — तुरियं पवेसेसु । 'तह' त्ति पवेसिओ एसो । कयजहाविद्दिजिणपूयाइकिच्चो य विणयावणयकाओ भालयलँडवियकरसंप्रुडो भूवई भणिउं पवत्तो - महाराय ! १ मुखसौन्दर्य ॥ २ राहुः ।। ३ मानशोकादि ॥ ४ त्याग:-- दानम् ॥ ५ परिहितभुजङ्गनिर्मोक निर्मलदुकूलयुगलः । निर्मोकः सर्पकञ्चुकः ॥ ६ समप्रपूजावर्गव्यग्रहस्तपुरुषानुगम्यमानः ॥ ७ लवट्टिय सं० ॥ सामायिकव्रते मेषरथकथा निकम् ४२ । सामायिकव्रतस्य स्वरूपम् ॥२९९ ॥

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