Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 317
________________ देवभद्दसरिविरइओ कहारयणकोमो॥ विसेसगुणाहिगारो। ॥२९४॥ उत्तमैः सह साजत्यं पण्डितैः सह सङ्कथा । अलुब्धैः सह मित्रत्वं कुर्वाणो नावसीदति अनर्थदण्डता एत्तो पइदिणं पि कायवमेयं । पयट्टा दो वितं मुर्णि पज्जुवासिउँ । अहिगयजिणुद्दिदुसस्थपरमस्था य जाया दो 18 व्रते चित्रवि । नवरं अयंडजमदंडखंडियजणगजीवियवाणुमाणेण विर्णिच्छियासेससत्तसंताणावस्सविणासो 'अलाहिं संसारियकिचचिं गुप्तकथातणेणं' ति विणिच्छिऊण पुरिससीहो सपणयं मायरं भायरं च मणिउं पवत्तो नकम् ४१ अम्मो ! रम्ममिमं घरं पियजणो लच्छी य सोक्खाबहा, चिक्खेवविहायगं च तरुणीदिद्विच्छडावरं । से भूरिगइंद-जोह-तुरयं नो कस्स सम्मोहगं ?, किंतुद्दामकयतकेसरिभयं सबोवरि बट्टई। जाणे ई मह विष्पओगवसती तुम्हाण दुक्खं पहुं, होही संगविवजणेण महई पाहा वहणं पि हु।। चित्तं केवलमुलसंतसहसामच्चुप्पयाराउलं, गुत्तीखित्तमिवेह चिट्ठदि महाकट्ठण गेहे मम ता संसारसमुद्दपारगमणे दुक्खग्गिविज्झावणे, सन्नाणाइगुणोवलंभजणणे किच्चा सहेजं मम । पुग्नं अजह वजहावरमई माइंदजालोवर्म, सवं बुज्झह मा य मुज्झह महारायं ! तमाभोगिउं इमं च सोचा अचंतसभय-चमक्कारं जंपियं जणणीए-वच्छ ! किमेवं अवुत्तपुर वुच्चइ ? कहं वाऽपुवपत्थियपयत्थसहा१ मडंड प्रतौ ॥ २ विनिधिताशेषसत्वसन्तानावश्यविनाशः ।। ३ णासा 'अ' खे० प्र० ॥ ४ चित्ताक्षेपविधायकं ॥ ५ सैन्यम् ॥ ६ किन्तुहामकृतान्तकेशरिभयः ॥ ७ मम विप्रयोगवशतः ॥ ८ उल्लसत्सहसामूत्युप्रचाराकुलम् ॥ ९ कृत्वा ॥ १०वम् 'आभोम्य' शास्वा ॥ ॥२९४॥ ACAXAMIRRORIANRAKA दानविधानम् तो खेत्त काल पुरिसं परिसं मइपयरिसं च अप्पगयं । परिमाबिऊण मुणिणा सायरमिति भणिउमाढत्तं ॥१॥ नरवर ! सएसु सूरो विऊ सहस्सेसु होइ य वयस्सी । लक्खेसु कोइ एको दाया पुण तेसु भयणिो ॥ २ ॥ ता दाणमई वि हु सुकयकम्मणो कस्सई परं होई । किं पुण सक्खा णेगप्पयारवत्थूणमिय दाणं ? ॥३॥ तत्थ वि विर्वमपिउपुनपगरिसावञ्जणत्थमित्थमिमा । पडिवत्ती दुकरमिमं दसणसारम्मि पेम्मम्मि ॥४ ॥ पाएणं एस्थ जणो जीवंताणं पयासए पणयं । सग्गोवगयाणं पुण न पियाण वि पुच्छए वत्तं ॥ ५ ॥ ता नरवर ! दाणरुई अन्नत्थ कहिं पि दीसइ न एवं । नवरं कप्पंति न अम्ह कह वि लोहाइयपयस्था । पपयस्था ॥६ ॥ लोहं हि नरिंद! कुसी-कुहाड-घण-दंतिगाइकजेसु । उवजुजह जीववहो य तत्थ तो तं न घेत्तवं ॥७॥ कणगं पि लोह-सम्मोह-मेहुणाईण कारयं परमं । संजमविभयहेउं गिण्हंतु कहं विगयसंगा ? ॥ ८ ॥ कप्पासो वि सचित्तो पलिमंथो चिय सततचिंताए । लञ्जच्छायणमित्तोवहीण साहूण किं कुणउ ? ॥९॥ गावीओ वि हु दिन्नातो राय ! सीयंति चारिविरहेण । तबिहियपयत्ता पुण मुणिणो धम्माउ भस्संति ॥१०॥ जं सयमदुक्खियं न य परेसि दुक्खाण कारणं होइ । केवलमुपैग्गहकरं तदाणं सोगइनिहाणं ॥११॥ हैल-कुलियाईहि मही महिन्जमाणा सगन्भमहिल छ। दुहमणुहवइ मरन्ति य णता तनिस्सिथा जीवा ॥ १२ ॥ १ पर्षदं मतिप्रकर्ष र भात्मगतम् ॥ २ विपनपितृपुण्यप्रकर्षावर्जनार्थम् ॥ ३ लोभ- ॥ ४ णमेत्तो' प्र. ॥ ५ तद्विहितप्रयत्नाः ॥ ६ उपप्रहकरम् ॥ ७इलिकु° ख० प्र० ॥८ मध्यमाना ।

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