Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 319
________________ अनर्थदण्डबते चित्रगुप्तकथानकम् ४१॥ देवभइसरिविरइओ कहारयणकोसो ॥ विसेसगुणाहिगारो। ॥२९॥ CARIKAA परिहासो मयणुद्दीवगेहिं वयणेहिं जो स कंदप्पो १ । कोकुइयं घयणाण व विगियागिइहासजणणाइ २ ॥८॥ एए पमायचेडाविरईए दो वि इंति अइयारा । न पमायविरहिएं जं संपजइ एरिसी किरिया ॥९ ॥ संबद्धा-संबद्धाण भासणं भूरिसो हि मोहरियं ३ । पावोवएसविरईविसए एसो वि अइयारो ॥ १० ॥ अहिकिच्चइ नरगाइसु अप्पा जेणेह तं हि अहिगरणं । संजुत्तं पुण तं चिय अक्खेवेणेव काखमं ॥११॥ तहाहिजंर्तिय-जोत्तिय-नद्धियसगडाई गेहबाहि ठार्वितो । हिंसप्पयाणविरईअइयारं न कहमायरइ ? ४ ॥ १२ ॥ उवभोग-परीभोगा पुवुत्तऽत्था हि ताणमइरेगो । पंचमगो अइयारो अवसेओ सो पुणो एवं बहुतेल्ला-ऽऽमलगाई घेतूण नईए जाइ ण्हाणत्थं । अन्ने वि तदणुसंगेण हंति तेणेवै जीववहो तंबोल-पुप्फ-सयणा-ऽऽसणाइ सेसं पि अहिगमवसेयं । एवंविहदोसं चिय ता तवजणकए विहिणा ॥ १५॥ गेहि चिय व्हायवं सुगलिय-परिमियजलेण एगते । पुप्फाइ वि घेत्तवं अलियाइविवजियं उचियं ५ ॥१६॥ एवमिमे अइयाराऽणाभोगाई हिं होति नियमेण । आउट्टिकरणतो पुण भंगा एए चिय हवंति ॥१७॥छ।। ता भद चित्तगुत्त ! निरुत्तमित्थमणत्थदंडसरूवं किं पि उवइई । अणत्थदंडसमुत्थविडंबणाणुभवणं पुण तुह जहा जायं तहा साहेमि १ भाण्डानामिव विक्रताकृतिहासजननादि । पयजा-भाण्डाः, भाव-भवैया-बहुसंपया ' इति भाषायाम् ॥ २ 'हिओ जं सं.प्र.॥ ३ अधिक्रियते ॥ ४ यन्त्रितयौक्त्रिकनदशकदादि ॥ ५ हिंखप्रदानविरत्यतिचारम् ॥ ६ पूर्वोकार्थों ॥ ७ 'गजी' सं. प्र. ॥ ८ अमरादिरहितमित्यर्थः ॥ ANKAKIRBAKKARAKARARY PRARTHAKER ॥२९६॥ WARKAKR45%EWER इणो भवामो? ति । पुरिससीहेण भणियं-अम्मो! पहजं पवञ्जिउकामस्स मह विग्यविणिग्घायणेणं ति । अह भूरिसोगावेगविगलंतंसुजालाविललोयणाए भणियमणाए-पुच ! अपत्तकालकालकवलियमहारायदुक्खे तहट्टिए वि तुद्द विओगसोगो गंडोवरि दुद्रुपिडिगुट्ठाणतुल्लो अंतोविसंतमहंतसल्लं व बादं विद्दवइ मणो । पुरिसदत्तेण भणियं-बच्छ ! सचमुल्लवइ जणणी, रजसिरिमुव जिऊण पवजं करेजासि । पुरिससीहेण भणियं-एवमेयं, केवलं समीववत्ती सेमवत्ती, सपच्चूहनिउसंबा कालविलंबा, उच्छाहसाहिदाबग्गी गिहकिचसामग्गी, दुल्लु भागमो गुरुसंगमो, ता कीस बंछियत्थविलंबगेण ममागाइभवोहबुज्झमाणस्स उत्तरणपयत्चपरस्स विक्खेवं कुणह ? ति । अह मुणियतभिच्छएण भणियं पुरिसदत्तेणअम्मो ! सुक्ककाणणनिहहणपयट्टो हुयवहो [विव] समीहियत्थकरणुजतो सप्पुरिसो वि न विणिवत्तिउं तियसवइणा वि तीरइ, ता कीस कुसलपक्खपडिक्खेवुप्पायणेण महाणुभावस्स एयस्स असंतो[समुप्पाएसि ! धनो क्खु एसो जस्स एवं सुकयावजणुजमो, तुम पि अम्मो ! एवंविहसुयज[ण]णेण नीसेससीमंतिणीतिलयभूया बढुसि, एयमुकयसमावणाणुजाणणपुत्रभागभागिणी य भविस्ससि । जओ कत्ता कारवगो वि य तस्सऽणुमंता य सुद्धभावेण । धम्मं पडुच्च तिमि वि तुल्लफला चेव बुच्चंति ॥१॥ जइ कुणइ अजुत्तं किं पि अम्म ! ता तनिवारणं जुर्त । सम्मग्गं लग्गे वि हु निवारणं पुण महामोहो ॥२॥ १ भूरिशोकावेगविगलदभुजालाविललोचनया ।। २ दुष्पपिटिकोत्थानतुल्यः । पिटिका-गण्डिका ॥ ३ "डिगिट्ठा सं. प्र. ॥ ४ अन्तर्विशन्महाशल्यमिव ।। ५'समवत्ती' मृत्युः ।।

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