Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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देवमयरिविरहओ कहारयणकोसो॥ विसेसगुजाहिगारो।
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स्थूलपरि| ग्रहविरतौ धरणकथानकम् ३८॥
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रसिंदो, हुयबहधम्मिञ्जमाणेसु य धाउपाहणेसु खेत्तो एसो, जायं जच्चकंचणं । पहिट्ठा दो वि, न ठिया तेतिएण । अंदभलोभामिभृया य भुजओ पयट्टा सुवनं पाडिउं ।
अह गरुयकोववसवित्थरंतभालयलमिउडिभीममुहो । ते भणइ खेतवालो पञ्चक्खो तक्खणं होऊ रे रे कीडप्पाया ! जइ करुणाए मए पढमवेलं । सोढं सुवनपाडणमेत्तियमेचेण वि य भुओ
॥२ ॥ लग्गा एत्थ वि तुम्मे रक्खिाइ तुम्ह कारणे किमिमं ?। नियपुत्रपरिणई पि हुन विभावह वह जमे ॥३॥ इय पढमपाडियं पि हु होडयमुदालिऊण तह खेत्ता । जह अन्ननविउत्ता ते पडिया दूरयरखेते
॥४ ॥ तहाविहं च अप्पाणं पेहिऊँण धरणो परं विसायमुवगतो चिंतेइ-अहो ! कत्तो निप्पुन्नयाणं कजसिद्धी ? पुरिसयारो वि न केवलो किलेसाओ परं फलं दाउमलं, किमित्तो कीरउ ? कत्थ वा गम्मउ ?-त्ति गाढसोगाउलियस्स तस्स पुषसंगइओ एगो सुरो पुरो ठाउं जंपिउं पवत्तो
किं भो भाउय ! न सरसि मिहिलाए पुरीए पुत्वजम्मम्मि । तुममहयं पि हु जाया पुत्ता एगस्स वणियस्स? ॥ १ ॥ अनोनगाढपणया अन्नोनमभित्रकअपरमत्था । अन्नोन्नसोक्ख-दुक्खाणुवतिणो वुट्टिमणुपत्ता
॥२ ॥ दबोवजण हेर्ड किसि-वाणिजाइविविहकम्मेसु । लग्गा तदेगचित्ता दर्व पि हु अअियं किं पि १ तेत्तेण प्रतौ । तावता ॥ २ भवन:-अत्यन्तः ॥ ३ गुरुककोपवश विस्तरदालतल कुटिभीममुखः ॥ ४ 'दाटक' सुवर्णम् ॥ ५ प्रेक्ष्य ॥ ६ 'पूर्वसातिकः' पूर्वजन्मपरिचितः ॥
॥२७३॥
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धरणस्य पूर्वजन्म
॥२७॥
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नवरं तेत्तियमितेण वेवमित्तं पि तेत्तिमलभता । परतीरगमण नरवइसेवणमभुट्टिया काउं
॥४ ॥ तत्थ वि असिद्धका वे[]रागरखणण-खन्नवाए । बाढं पयमाणा चिरजियत्थस्स वि य चुका ॥५॥ अच्चंतचित्तपीडाविहुरसरीरा य विहुँणि उच्छाहा । किं करिमो? पोकरिमो य कस्स ? एयं विभाबिंता ॥६॥ कत्थइ रहमलभंता वेरग्गावडियमाणसा सगिह । चइउं हिर्मयडपडणट्टयाए (?) अह पट्ठिया सिग्धं दिट्ठो य दिदैववित्थरो नायसबनायचो । संभूयनामधेयो मुणिवसहो अद्धमग्गम्मि
॥८ ॥ नाणि त्ति सो य बंदिय पुट्ठो अम्हेहिं अप्पणो वत्तं । भयवं ! किमत्थ कीरउ विवरीयत्तम्मि हयविहिणो? ॥९॥
तो मुणिणा संलतं देवाणुपिया! परिचयह लोभं । एसो हि नूणमेवंविहाणऽणत्थाण पदमपयं ॥१०॥ एयद्दोसेणं चिये कत्थ पयति न दुकरे वि जणो? । अज्झवसइ किमकजं पि नेव? वचइ न वा कत्थ? ॥११॥ तो अम्हेहिं पुट्ठो भयवं! को तस्स निग्गहे हेऊ ? । तेणं भणियं इच्छाविनिग्गहेणं हि संतोसो ॥१२॥ संभवइ जेत्तियं जेत्तिएण निबहइ नियकुटुंबं पि । तेत्तियमेत्ताउ परं नियमेजा निग्गहिय इच्छं पुणरवि समए पुट्ठो किविसया ? कह व सा बिहेयवा ?। संभवइ मिहत्थाणं किह वा गिहकअनिरयाणं? ॥१४॥ अह जीववहा-लिय-परधणित्थिपरिहारमक्खिउं मुणिणा । सबपरिग्गहविसयं परिमाणं सीसए एवं ॥१५॥
१ तृप्तिम् ॥ २ वाकरखनननन्यवादयोः ॥ ३ भ्रष्टौ ॥ ४ विधुनितोत्साहौ । किं कुर्वः पूरकुर्वब कस्य ? एवम् ॥ ५ त्यक्त्वा ॥६"मपडपड प्रती। हिमतटपतनार्थाय (१) ॥ ७ "दखट्ठवि प्रती ॥ ८ वार्ताम् ॥ ९ "य तत्थ पयहति प्रती ॥ १० अज्जय' प्रती ॥ ११ "णिणो प्रती ॥
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