Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
View full book text
________________
।
स्थूलपरिग्रहविरतौ घरणकथानकम् ३८।
देवमहरित विरहओ कहारयणकोसो ॥ विसेसगुजाहिगारो। ॥२६९॥
SANRAKSHANAMAHARASTERNATIONA%
ॐा जे पुण इच्छाविनिवित्तिविरहिया बहुपरिग्गहारंभा । ते भूरिकिलेसा-ऽऽयासभायणं हुंति धरणो व ॥९॥
तहाहि-अस्थि गरिढमरहट्ठवरिष्टुं अरिहपुरं नाम नयरं । तं च पयंडभुयदंडावगुंडियरायलच्छिसमद्धासियवच्छहै थलो तिलोयणो [नाम] पुद्द[]वई पालेइ ।
जो निच्चनुमानिलतो धम्मकरो तह विणायगाइनओ। महिहरसिरदिपओ सच्चं उच्चदइ नियनामं ॥१॥
तस्स य रमो औसमसयणो पपईए चिय विसुद्धबुद्धिपगरिसागरभूतो भूओवरोहरहियहियतो खेमायचो नाम पहाणपुरिसो परिवसइ, वसुंधरामिहाणा य से भञ्जा, धरणो य ताण पुत्तो । तं च उच्छंगगयं एगया खेमाइचो जाव घरगणोवगतो कीलावतो अच्छह ताव भीमसेणं मुर्णि अवरेण साहुणा समेयं गोयरचरियाए परियडतं पेच्छइ । 'अहह ! किं मइविम्भमो ? सरि[सागारविप्पलंभो वा ? सच्चं वा ? जमेस पंडुसुओ असेसवीरवरिट्ठो इत्थमारीद्धकट्ठाणुट्ठाणो व दीसई' त्ति चिंतंतो सुयं मोत्तूण धाविओ तदणुमग्गेणं, सायरं पडितो भीमसेणपाएसु, भणिउं पबत्तो य-भय ! किमहं सम्मूढमई ? उयाहु स एव पंडसुतो भीमसेणो तुम ? ति । भीमसेणेण भणिय-भदन सम्मूढमई तुम, अम्हे पंच
१ भूशिक्षायामभाजनम् ॥२ "समिजा" प्रती ॥ ३ यथा त्रिलोचन:-महादेवः नित्यम् उमाया:-पार्वत्याः निलया-आश्रयः, 'धर्मकर:' धर्मस्य कारका. विनायकादिभिः नतः, महीधरशिरसि-पर्वतशिरसि पत्तपदव तथा अयमपि त्रिलोचनो राजा नित्यम् उमाया:-कीराः माधयः, धर्माः करो यस्य, विशिका पतिभिः नतः, महीधरशिरसि-शत्रुभूपालशिरसि दत्तपदधेति यथार्थाभिरूयोऽयं त्रिलोचनो राजा ॥ ४ °नपुरो प्रती ॥ ५ 'भासभस्वजनः'
निकटसम्बन्धी ॥ ६ 'रखो क प्रती ॥
॥२६९॥
CHERSAGACAS
वि भाउया पवनसामना इहई आगया बट्टामो । विम्हइयहियएण य बेजरियं खेमाइचेण-भय ! को एस वइयरो ? केहिं पंडमहुरापुरीविसयाहिवच्चं ? कहिं वा एसो मणसा वि दुकरो संजमवावारो। साहुणा भणियं-मग्गट्ठियाणं एगवयणं वा दुवयणं वा कप्पए योगें, ता कुसुमावयंसाभिहाणोववणनिवासिणो पत्थावे अम्ह गुरुणो पुच्छेञ्जासि त्ति । __अह वियप्पकप्पणावाउलो सगिहमुवगतो खेमाइचो । मुणिणो वि संमत्थियपत्थुयपओयणा पडिगया जहागय । खेमाइचो वि पुन्बुत्तचिंताइरेगेण खणं पि रई अपावमाणो वियालसमए गओ कुसुमावतंसमुजाणं । दिट्ठा बहवे साहुणो, वंदिया जहारिहं, आसीणो पुवपरिचियस्स जुहिहिलमुणिस्स समीवे । विलुत्तसिणिद्धसुद्धरूयपन्भारं तं च अज्जुणाइणो वि दट्टण सोगसंगलन्तंसुजालाविलच्छो सो भणितो तक्खणुप्प[भ]पच्चभिन्नाणेण जुहिडिलेण-भो खेमाइच। किमेवं संतप्पसि ? एवंविहपजवसाणा सब च्चिय भवडिई । खेमाइचेण भणियं-तहा चि किमेवंविहदुरणुचरचरणारंभस्स विसेसनिमित्तं ? । जुहिडिलेण भणियं-संवणवञ्जासणिनिविसेसमिमं तहा वि लेसतो साहिप्पंतं सम्ममवधारेसु
महरापाणपरतसजायबसुपजणियदेहसंतावो । दीवायणो नियाणं काउं चारवइदहणट्ठा मरिउ अग्गिकुमारो देवो होऊण सेंरियचिरवेरो । कणयमयभवण-गोउर-पायारं वारवइनयरिं १ कथितम् ॥ २ कई पं" प्रती ॥ ३ विषयाधिपत्यम् ॥ ४ कई वा प्रतौ ॥ ५ विकल्पकल्पनाव्याकुलः स्वग्रहम् ॥ ६ समर्थिराप्रस्तुतप्रबोजनौ ॥ ७ युधिष्ठिरमुनेः ॥ ८ विलुप्तस्निग्धशुखरूपप्राम्भारम् ॥ ९ शोकसालदधुजालाविलाक्षः॥ १० श्रवणव आशनिनिविशेषमिदम् ॥ ११ कथ्यमानम् ॥ १२ स्मृतचिरवरः ॥
ASMS
SANSARKAGES

Page Navigation
1 ... 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393