Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
View full book text
________________
देवमसूरिविरइओ
496464
कहारयणकोसो । विसेसगुजाहिगारो।
स्थूलमृषाविरतौ सागरकथानकम् ३५।
किमहं करेमि फेडेमि देमि घाएमि बा जियावेमि ? । चिरकयकम्मणुरूवो सन्बो चिय मज्झ वावारो ॥ १४ ॥ तो चिंता झाणगओ किं पुण पुर्व मए कयमकिचं ? । मलाविद्धं जूयं अह पेच्छइ वैच्छवालभवे ॥१५॥ संहरियकोवपसरो तयणु महप्पा मुणी स मंडव्वो । सकयं सोढचं चिय भावतो पसममल्लीणो
__ इय भद्द ! मुंच चौमोहवूहमवरे भवम्मि विहियाण । सुकयाण दुकयाण य नो छुट्टइ देवराओ वि ।। १७ ।।
ता सबहा जहट्टियं वक्खाणितस्स वेयेवकं न दोसलेसो वि महाणुभावस्स पब्वयगस्स, न य तकयपद्माणस्स वसुराइणो त्ति । इमं च सोचा मुहुममइविमरिसियकसमझेण जंपियं सागरेण-रे मुद्ध! अलमलं तुह विचारेण, जत्थ जीववहो अलाहि तेण वक्खाणेण, किंच जइ ते असच्चभासादोसवंतो न हवंति ता किं तकाले चिय अणत्थं पत्ता ? जे वि चोरिकाए कारिणो तकाले वावाइजंति ताण वि पुष्वकालियं को वि नै कम्ममुकित्ता किंतु तक्खणकयं चोरिकमेव संसह ति । इमं च गुरुकम्मयाए न मणागम[वि पडिवन्नं अग्गिसिहेणं । 'किं इमिणा सुकवाएण?' ति पयंपमाणो बाढममरिसियमाणसो ज्झड त्ति अवकतो सो तस्स समीवाओ। ___सागरो पुण समुप्पन्ननिम्मलपन्नाइरेगो पवड्वन्तसद्धम्मकम्माभिरई लोयमुहातो निसामिऊण [वइरसेण]सूरीणमागमणं गतो तयंतियं, पडिओ पाएम, विनविउं पवत्तो य-भयवं! पुर्व मए सुवेलाए पुरीए अमच्चस्स सपुत्तस्स तुम्मे धम्म
१यूकाम् ॥ २ वत्सपालभवे ॥ ३ भावयन प्रशममालीनः ॥ ४ व्यामोहव्यूहम् ।। ५ वैदवाक्य ॥ ६ सश्ममतिविमुष्ट कार्यमध्येन ॥ ७ च्यापायन्ते ।। | ८न कम्म प्र० ॥ ९ शुष्कवादेन ॥ १० दृश्यतां पत्रम् २४२ पृष्टम् २ ॥
॥२४९॥
CASANSKRISRUST
HASHANAMANCHAORASAALKRICONICACACAXCIAS
॥२४९॥
4G
उवदिसंता बंदिया पज्जुवासिया य, तहा पवनो य जीववहनियमो, संपयं च अलियवयणनिवत्ति काउमिच्छामि, अतो तस्सरुवं साहेहि ति । सूरिणा भणियं-निसामेसु,
धूलमुसावायस्स य विरई वीयं अणुव्वयं तस्स । विसओ कन्ना-गो-भू-नासाहर-कूडसक्खेज कन्ना दुपयं गो चउप्पयं च अपयं वम् य भूमी य । दो सगैए चिय भेया इह बजइ पंच अड्यारे ॥ २ ॥ सहसा अब्भक्खाणं रहसा य सदारमतमेय च । मोसोवएसमवरं वजह तह कूडलेहं च
॥ ३ ॥ सहसा अविभाबित्ता अब्भक्खाणं असंतदोसाणं । आरोवणं हि जारो चोरो व तुमं हि इच्चाइ
॥ ४ ॥ रह एगंतो भन्नइ मंतन्ते तत्थ पेच्छिउं कोइ । अभक्खाइ जहेते रायविरुद्धाई जंपति नियभजाए एगंतभासियाई कहेइ अन्नेसिं । एवंरूवो हि सैंदारमतभेतो विणिहिट्ठो मोसं अलियं भन्नइ तं अन्नं सिक्खवेइ के पि नरं । इममेयं च वएजसु एसो मोसोवएसु ति
॥ ७ ॥ कूडेहिं असम्भूओ लेहो वन्नावली लिहणरूवो । तस्स करणं विहाणं अइयारो पंचमो एस
नणु अब्भक्खाणं अविजमाणदोसाभिहाणतेण पचक्खायं चेव ता कह न भंगो ? जमेचं अइयारो कित्तिजह ? । सचं । जया परोवधायगं अणाभोगाइणा भासह तया तहाविहसंकिलेसाभावेण वैयसावेक्खयाए न भंगो, परोवधायहेउत्तणतो य
१ निवित्ति प्र० ॥२ "मीए खं० प्र० ॥ ३ गय चि प्र दी स्वगती ॥ ४ स्वदारमन्त्रभेदः ॥ ५ बदमैच च वः ॥ ६ एसो त्ति प्र० ।। ७ व्रतसापेक्षतया ।।
स्थूलमृषाविरते. स्वरूपं तदतिचारास्तन्द्रकातिचारयोः स्वरूपं च
ASSWER

Page Navigation
1 ... 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393